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सरकार ने किया नई रक्षा कंपनियों द्वारा मुनाफ़ा कमाए जाने का दावा, रक्षा श्रमिक संघों ने कहा- दावा भ्रामक है 

सरकार ने दावा किया है कि नव गठित रक्षा कंपनियों ने मुनाफ़ा अर्जित किया है, इसके बाद मान्यता प्राप्त रक्षा कर्मचारी संघों ने इसे “अनुचित” और “अर्ध-सत्य को प्रचारित” करने वाला बताया है। 
 Defence
फाइल फोटो।

केंद्रीय रक्षा मंत्रालय (एमओडी) के द्वारा यह दावा किये जाने के बाद कि नव गठित रक्षा कंपनियों ने मुनाफा अर्जित किया है, जिसमें यह दर्शाया जा रहा है कि जब उन्हें पूर्ववर्ती आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) के तहत प्रशासित किया जा रहा था तो उसके संचित घाटे की प्रवृति को उलट दिया गया है, के कुछ दिनों बाद मान्यता प्राप्त रक्षा कर्मचारी संघों ने इस तुलना को “अनुचित” और “अर्ध-सत्य को प्रचारित” करने वाला बताया है। उनके अनुसार, “महामारी के दौर के प्रदर्शन” को ओएफबी के प्रदर्शन के प्रतिनधित्व के तौर पर नहीं दिखाया जा सकता है, जब इसकी तुलना सात रक्षा सार्वजनिक क्षेत्र की ईकाइयों (डीपीएसयू) से की जाती है।

इससे पहले, पिछले महीने रक्षा मंत्रालय ने अपने एक बयान में कहा था कि ओएफबी के विवादास्पद निगमीकरण के बाद पिछले साल अक्टूबर में गठित की गई सात रक्षा कंपनियों में से छह ने अनंतिम (प्रोविजिनल) लाभ दर्ज किया है। रक्षा मंत्रालय ने एक आधिकारिक बयान में कहा है कि यंत्र इंडिया लिमिटेड (वाईआईएल) को छोड़कर, बाकी सभी कंपनियों - म्युनिशन इंडिया लिमिटेड (एमआईएल); आर्मौर्ड व्हीकल निगम लिमिटेड (अवनी); एडवांस्ड वेपन्स एंड इक्विपमेंट इंडिया लिमिटेड (एडब्ल्यूई इंडिया); ट्रूप कम्फर्ट लिमिटेड (टीसीएल); इंडिया ओप्टेल लिमिटेड (आईओएल) और ग्लाइडर्स इंडिया लिमिटेड (जीआईएल) ने 1 अक्टूबर, 2021 से 31, मार्च 2022 के बीच के दौरान अनंतिम (प्रोविजनल) मुनाफा अर्जित करने की सूचना दी है। साझा किये गये आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक, ओएफबी के निगमीकरण किये जाने से तीन साल पहले के यदि औसत अर्ध-वार्षिक आंकड़ों को देखा जाये तो इन सात कंपनियों में से एक भी कंपनी मुनाफा नहीं कमा रही थी। 

मान्यता प्राप्त श्रमिक संघों ने हालाँकि, इन दावों को सिरे से ख़ारिज कर दिया है। 23 मई को रक्षा मंत्री, राजनाथ सिंह को संबोधित करते हुए एक संयुक्त पत्र में रक्षा संघों ने कहा है कि, “यहाँ पर यह उल्लेख करना मुनासिब होगा कि सेब और संतरों की आपस में तुलना करना बेमानी होगा। जब तक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण मापदंडों के आधार पर तुलना को पूर्व-निर्धारित नहीं किया जाता है, ओएफबी और नये डीपीएसयू की आपस में तुलना नहीं की जा सकती है।” पत्र पर आल इंडिया डिफेंस एम्प्लाइज फेडरेशन (एआईडीईऍफ़), आरएसएस समर्थित भारतीय प्रतिरक्षा मजदूर संघ (बीपीएमएस), और कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ़ डिफेंस रेकोगनाईज्ड एसोसिएशन (सीडीआरए) के द्वारा हस्ताक्षरित किये गये थे।

शुक्रवार को, एआईडीईएफ के महासचिव, सी. श्रीकुमार ने न्यूज़क्लिक को बताया कि रक्षा मंत्रालय जिस प्रकार की तस्वीर को चित्रित करने की कोशिश कर रहा है, वह “भ्रामक” है। उन्होंने कहा, “नवीनतम आंकड़े एक अन्यायपूर्ण एवं अलोकप्रिय फैसले को सही ठहराने के लिए आंकड़ों के साथ बाजीगरी करने से अधिक कुछ नहीं है।” उन्होंने आगे कहा कि, ऐसा करते हुए, केंद्र सरकार उन संभावित “कठिनाइयों” की भी “अनदेखी” कर रही है, जिनका आने वाले वर्षों में रक्षा कंपनियों को सामना करना पड़ सकता है।

डीपीएसयू के सामने आगे की चुनौतियाँ

रक्षा मंत्रालय के अनुमानों के मुतबिक, पिछले तीन वर्षों के दौरान एमआईएल का छमाही औसत घाटा 677.33 करोड़ रूपये था; वहीं एवीएनएल के लिए यह 164.33 करोड़ रूपये; आईओएल के लिए 5.67 करोड़ रूपये, वाईआईएल के लिए 348.17 करोड़ रूपये, एडब्ल्यूईआईएल के लिए 398.5 करोड़ रूपये; जीआईएल के लिए 43.67 करोड़ रूपये और टीसीएल के लिये 138.17 करोड़ रूपये था।

हालाँकि, इसके जवाब में श्रमिक संघों का तर्क है कि ये आंकड़े अपेक्षित थे, क्योंकि 2019-20 और 2020-21 के वित्तीय वर्ष कोविड-19 महामारी से बुरी तरह से प्रभावित साल थे। उनके मुतबिक, “इसमें माल के आयात के बाधित होने के परिणामस्वरूप राष्ट्रीय आपूर्ति श्रृंखला छिन्न-भिन्न हो चुकी थी, वस्तुओं की कीमतों में तीव्र वृद्धि, स्पेयर पार्ट्स, उपकरण एवं मशीनरी आदि की आपूर्ति में बाधा ने ओएफबी के संचालन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था।”

श्रमिक संघों ने आगे कहा है, “वित्तीय वर्ष 2018-19 में 3400 करोड़ रूपये मूल्य के आर्डर को विभिन्न सेवाओं द्वारा बीच में ही रद्द कर दिया गया था, जबकि उन ऑर्डर्स को पूरा करने के लिए जरुरी सामग्री की खरीद की जा चुकी थी। इसलिए, खर्चे को तो बहीखाते में दर्ज कर दिया गया, किंतु अंतिम तैयार उत्पाद को जारी नहीं किया जा सका था।” 

रक्षा कंपनियों के पहले छह महीने में, एमआईएल को प्रोविजिनल मुनाफा 28 करोड़ रूपये; एवीएनएल के लिए यह 33.09 करोड़; आईओएल के लिए 60.44 करोड़ रूपये; एडब्ल्यूईआईएल के लिए 4.84 करोड़ रूपये; जीआईएल के लिए 1.32 करोड़ रूपये; और टीसीएल के लिए 26 करोड़ रूपये का हुआ है। 

श्रमिक संघों के अनुसार, हालाँकि, उक्त कंपनियों को डीपीएसयू के तौर पर गठित किये जाने के बाद से, उन्हें “स्कूलों, अस्पतालों, पेंशन, इत्यादि,” पर कोई खर्च नहीं करना पड़ रहा है।” उनका कहना है कि पहले के अनुमानों की गणना में इन क्षेत्रों पर होना वाला व्यय भी शामिल था।

कर्मचारी संघों द्वारा साझा किये गए अनुमानों के मुताबिक, उल्लेखनीय रूप से 2016-17 और 2017-18 में, उपरोक्त खर्चों को शामिल करने के बावजूद ओएफबी ने लाभ अर्जित किया था। इस बीच, संघ के नेताओं ने नए उद्यमों के सामने आने वाली चुनौतियों के बारे में भी प्रकाश डाला है। 

शुक्रवार को न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में श्री कुमार ने बताया कि, “इनमें से कई डीपीएसयू कंपनियों ने इमारतों एवं बुनियादी ढांचे के रखरखाव पर होने वाले नए खर्चों को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर रखा है या इसमें भारी कटौती कर दी है। इसके चलते इसने पहले से ही कर्मचारियों को उनके कार्यस्थल पर और उनके परिवारों को आवासीय स्थलों पर प्रभावित करना शुरू कर दिया है।” 

उन्होंने आरोप लगाया कि सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) को किये जाने वाल भुगतान को भी “रोक दिया गया है या विलंबित कर दिया गया है”। उन्होंने बताया कि कई एमएसएमई उद्यमों ने भी इन डीपीएसयू के खिलाफ शिकायतें दर्ज करा दी हैं। ज्ञातव्य हो कि पिछले साल, समूचे देश भर में आयुध कारखानों की देखरेख करने वाले पूर्ववर्ती ओएफबी को एक फैसले में सात रक्षा कंपनियों में भंग कर दिया गया था, जिसकी कर्मचारी संघ ने फैसला लेकर कड़ी भर्त्सना की थी, जिसने इसके विरोध में हड़ताल की कार्यवाई की थी। बाद में, कर्मचारी संघों ने केंद्र सरकार के रक्षा क्षेत्र से जुड़े असैनिक कर्मचारियों के पदों को निगमीकरण किये जाने के बाद उनकी सेवा शर्तों पर कुठाराघात न करने के वादे पर कायम न रहने को लेकर भी खरी-खोटी सुनाई है। 

अंग्रेजी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:

Defence Federations Reject Profits Claimed by Former OFB Units

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