इग्नू के नये ज्योतिष पाठ्यक्रम पर वैज्ञानिकों और बौद्धिकों की प्रतिक्रियायें
एक बेहद चौंकाने वाले क़दम उठाते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (IGNOU) ने शैक्षणिक वर्ष 2021-22 के लिए ज्योतिष पर दो वर्षीय मास्टर कोर्स शुरू कर दिया है। 1985 में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय अधिनियम के पारित होने के बाद उसी साल स्थापित होने वाला इग्नू केंद्र सरकार द्वारा संचालित संस्थान है। इस समय यह विश्वविद्यालय खुली और दूरस्थ शिक्षा के ज़रिये विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, कृषि, क़ानून, सामाजिक कार्य और बहुत सारे विषयों में पाठ्यक्रम चलाता है।
इग्नू के मानविकी इकाई की ओर से हिंदी और संस्कृत, दोनों ही भाषाओं में पेश किये गये पिछले महीने ज्योतिष पाठ्यक्रम के लिए आवेदन मंगाये गये थे। इस कोर्स के सिलेबस में 'पंचांग और मुहूर्त', 'कुंडली बनाने' और 'ग्रहण की धारणा' जैसे कुछ पेपर हैं। इग्नू का कथित तौर पर दावा है, "इस पाठ्यक्रम का मक़सद छात्रों को भारतीय प्राच्य विज्ञान के तहत मनुष्य के व्यावहारिक जीवन में समय के ज्ञान से लेकर ग्रहों की गति, सूर्य ग्रहण, चंद्र ग्रहण से लेकर भारतीय ऋषियों की राय के आधार पर अंतरिक्ष में होने वाली घटनाओं की जानकारी मुहैया कराना है।"
— IGNOU (@OfficialIGNOU) June 28, 2021
हालांकि, कुछ अन्य भारतीय विश्वविद्यालय इसी तरह का पाठ्यक्रम चलाते हैं, लेकिन इग्नू स्वतंत्रता के बाद ऐसा करने वाला पहला शैक्षणिक संस्थान है। इसे "छद्म विज्ञान" क़रार देते हुए अब तक डॉ हामिद दाभोलकर जैसे कई विद्वान, शिक्षाविद, विज्ञान प्रचारक, और तर्कवादियों ने इस क़दम को लेकर अपनी नाराज़गी जताई है। कुछ तर्कवादियों ने "भारतीय विश्वविद्यालयों में ज्योतिष" नामक 800 से अधिक हस्ताक्षरकर्ताओं वाला एक ऑनलाइन अभियान शुरू किया था, जिसमें मांग की गयी थी कि इस "गुप्त विद्या" को पढ़ाने की योजना को वापस लिया जाये। विज्ञान प्रचार संगठनों और त्रिपुरा के बुद्धिजीवियों का एक सामान्य मंच अगरतला स्थित साइंस एंड रेशनलिस्ट फ़ोरम भी इग्नू के इस क़दम के ख़िलाफ़ सामने आ गया है और इसने इस पाठ्यक्रम को तत्काल वापस लेने की मांग की है। इसके नेता एमएल रॉय ने कहा है कि विज्ञान और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा देने के मामले में भारत ने जो कुछ भी प्रगति हासिल की है, इस तरह के पाठ्यक्रम से वह पटरी से उतर जायेगी।
इंडियन कल्चरल फ़ोरम ने कुछ विशेषज्ञों से बात की और उन्होंने जो कुछ कहा है, उसे यहां प्रस्तुत किया जा रहा है:
एक डिग्री के साथ ज्योतिष को एक अकादमिक पाठ्यक्रम के रूप में पेश करने के शुरुआती प्रयास 15 साल पहले भी किये गये थे। हालांकि, ये पाठ्यक्रम पहले विज्ञान पाठ्यक्रम के रूप में नहीं, बल्कि संस्कृत विद्यापीठ या मानविकी विभागों का एक हिस्सा थे। लेकिन, मौजूदा कोशिश ज्योतिष को उस विज्ञान के रूप में मान्यता दिये जाने की है, जो आम तौर पर मिथकों पर नहीं, बल्कि साक्ष्य पर आधारित होता है। ज्योतिष को विज्ञान नहीं माना जाना चाहिए। इसके साथ ही यह मान्यता समाज में और ज़्यादा तर्कहीन व्यवहार को आधार प्रदान करेगी और भारतीय ज्ञान की विरासत के आधार पर मान्यता पाने वाले छद्म विज्ञान के इस प्रयास की कड़ी निंदा की जानी चाहिए।
— डॉ. विनीता बल, इम्यूनोलॉजिस्ट और फ़ैकल्टी, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एजुकेशन एंड रिसर्च (IISER), पुणे, और पूर्व वैज्ञानिक, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इम्यूनोलॉजी, नई दिल्ली।
तर्कसंगत, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताक़तों पर हमला करना इस सरकार की ख़ासियत रही है। "ज्योतिष" में पाठ्यक्रमों की यह शुरुआत तो इसकी महज़ एक अभिव्यक्ति है। दुखद है कि जिस देश में संविधान के अनुच्छेद 51A(h) में कहा गया है कि वैज्ञानिक सोच, जांच-पड़ताल की भावना और मानवतावाद विकसित करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है, वहां ऐसी चीज़ें हो रही हैं।
— नरेंद्र नायक, अध्यक्ष, फ़ेडरेशन ऑफ़ इंडियन रेशनैलिस्ट एसोसिएशन्स
'ज्योतिष' में एक शैक्षिक कार्यक्रम, यहां तक कि मानविकी में एक तुच्छ व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी भारत की राजनीति के लिए गहरे तौर पर नुक़सानदेह है क्योंकि यह वैज्ञानिक नज़रिये की संवैधानिक अवधारणा और सार्वजनिक हित में साक्ष्य-आधारित नीति-निर्माण के विचार के विपरीत है। ।
— डॉ सत्यजीत रथ, इम्यूनोलॉजिस्ट और एडजंक्ट फ़ैकल्टी, आईआईएसईआर,पुणे
मेरी राय में यह क़दम पूरी तरह से भारत के संविधान की उस भावना के ख़िलाफ़ है, जो साफ़ तौर पर वैज्ञानिक सोच, मानवतावाद और जांच-पड़ताल की भावना और सुधार के विकास की बात करता है। खगोल विज्ञान और ज्योतिष में फ़र्क़ होता है। जहां खगोल विज्ञान एक विज्ञान है, वहीं ज्योतिष एक छद्म विज्ञान है, जिसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं होता है। यह साबित करने के लिए हमारे पास कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है कि आकाश में तारे और ग्रह मानव जीवन को प्रभावित करते हैं और जन्म का समय व्यक्ति का भविष्य निर्धारित करता है। सरकार और शैक्षणिक संस्थानों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अज्ञानता, अंधविश्वास और रूढ़िवाद को दूर करने के लिए लोगों को वैज्ञानिक नज़रिया और तर्कसंगत सोच विकसित करने को लेकर उन्हें उचित रूप से शिक्षित किया जाये। भारत में लोकतंत्र फले-फूले, इसके लिए सही मायने में वैज्ञानिक सोच विकसित करना ज़रूरी है। वैज्ञानिक और तर्कवादी पहले से ही वैज्ञानिक सोच और तर्कवाद के विचार को फ़ैलाने की कोशिश करते रहे हैं। इस दिशा में काम करते हुए तर्कवादी डॉ. नरेंद्र दाभोलकर, कॉमरेड गोविंद पानसरे, प्रो. एम. एम. कलबुर्गी और गौरी लंकेश ने अपनी-अपनी जान गंवायी है।
हालांकि, ऐसा देखा गया है कि भारत में इस तरह के अवैज्ञानिक पाठ्यक्रम शुरू करने को लेकर भाजपा सरकार की ओर से लगातार कोशिशें होती रही हैं। 21वीं सदी की उस पीढ़ी को ज्योतिष पढ़ाना, जो सबसे उन्नत विज्ञान और प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल करती है, निश्चित रूप से 'छद्म विज्ञान' को बढ़ावा देने का ही एक प्रयास है और इसके दीर्घकालिक नतीजे होंगे। युवाओं को ज्योतिष में विश्वास दिलाना एक ऐसी मानसिकता तैयार करने का राजनीतिक एजेंडा है, जो बतौर नागरिक राज्य पर सवाल उठाने के बजाय नियति को ही समाज में गरिमा और बराबरी का दर्जा वाले मानव जीवन से वंचित होने के लिए ज़िम्मेदार ठहराती हो।
— डॉ. मेघा पानसरे, तर्कवादी और रूसी भाषा के प्रोफ़ेसर, शिवाजी विश्वविद्यालय
साभार: इंडियन कल्चरल फ़ोरम
अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें
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