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3 साल पहले बंद हुई बिहार की जूट मिल बन रही है खंडहर

कई ज़िलों के 4,000 से अधिक मज़दूर और किसान अपनी जीविका के लिए समस्तीपुर के मुक्तापुर में लगी रामेश्वर जूट मिल पर निर्भर हैं।
3 साल पहले बंद हुई बिहार की जूट मिल बन रही है खंडहर

समस्तीपुर: बिहार की एकमात्र जूट मिल जो समस्तीपुर जिले के मुक्तापुर में मौजूद है यानि रामेश्वर जूट मिल करीब साढ़े तीन साल पहले बंद हो गई थीं, मिल से बेरोजगार हुए लगभग 4,200 कर्मचारी अपनी जीविका चलाने के खासा संघर्ष कर रहे हैं। उनमें से अधिकांश आजीविका कमाने के लिए बड़े शहरों की तरफ कूच कर गए हैं, जबकि बाकी अभी भी मिल के खुलने का इंतजार कर रहे हैं। 125 करोड़ रुपये के सालाना टर्नओवर वाली मिल के अचानक बंद होने से पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, सहरसा, मधेपुरा और कटिहार जिले के हजारों जूट किसानों को भी बड़ा झटका लगा हौ जो इस मिल को अपनी फसल बेचते थे।

इस बीच, मिल मालिकों द्वारा मजदूरों का बकाया भुगतान न करने पर श्रमिकों और कारखाना प्रबंधन के बीच गतिरोध चल रहा है। 6 जुलाई, 2017 तक यानि मिल के बंद होने तक जो कर्मचारी काम कर रहे थे, उनका वित्तीय वर्ष 2016-17, 2017-18 और 2018-19 के बोनस का भी बकाया है।

सेवानिवृत्त होने वालों को उनकी ग्रेच्युटी का भी भुगतान नहीं किया गया है। उनके वेतन से काटे गए भविष्य निधि (पीएफ) की तरफ मिल का योगदान कथित तौर पर अक्टूबर 2016 से उनके पीएफ खातों में जमा नहीं किया गया है।

दरभंगा राजघराना (खंडवाला राजवंश) ने 84 एकड़ भूमि पर 1926 में मिल को स्थापित किया था और इस रामेश्वर जूट मिल्स लिमिटेड को महाराजा कामेश्वर सिंह ने 1954 तक चलाया था। बाद में इसे बिड़ला ग्वालियर लिमिटेड के महासमूह ने ले लिया था जिसने इसे 1976 तक प्रबंधित और संचालित किया था। कंपनी ने 1986 में अपनी जूट मिल को कांग्रेस के पूर्व कोयला मंत्री संतोष कुमार बागरोडिया के स्वामित्व वाली विनसम इंटरनेशनल लिमिटेड को बेच दिया था, जिसने बाद में इसे पश्चिम बंगाल स्थित उद्योगपति बिनोद नाथ झा को बेच दिया था- जो मिल के वर्तमान मालिक हैं। 

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मिल में अनाज के भंडारण में इस्तेमाल की जाने वाली 70 टन की बोरियों के दैनिक उत्पादन की क्षमता थी। 2014 में बड़े पैमाने पर आग लगने से संयंत्र की कई मशीनों को नुकसान हो गया था, तब इसकी उत्पादन क्षमता घटकर 35 टन प्रति दिन हो गई थी। मार्च 2012 में आग में लगभग 14 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था, लेकिन पिछले 10 वर्षों में संयंत्र में बड़े पैमाने पर तीन बार आग लगने से मिल को भारी नुकसान हुआ है। अप्रैल 2014 में आग लगने की दूसरी घटना में, कंपनी की 6 करोड़ रुपये की संपत्ति के नुकसान का अनुमान है। 17 मार्च, 2019 को फिर से, एक और आग ने कथित तौर पर 5 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान पहुंचाया था।

क्यों चलती मिल बंद हो गई 

राज्य में संस्थागत भ्रष्टाचार का स्तर बार-बार सुर्खियों में रहा है। मिल भी कथित रूप से इसका शिकार हुई है। कथित तौर पर, बिहार राज्य खाद्य और नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड (BSFCSCL) का मिल पर लगभग 18 करोड़ रुपये का बकाया है।

बीएसएफसीएससीएल(BSFCSCL) के वरिष्ठ अधिकारी मिल मालिक से एक कमीशन यानि रिश्वत मांग रहे थे ताकि मिल का भुगतान आसानी से किया जा सके। इसके परिणामस्वरूप विवाद हुआ, जो पटना उच्च न्यायालय में चला गया। पीएसयू (PSU) को 2019 में भुगतान करने के लिए निर्देशित किया गया था। न्यायिक हस्तक्षेप के बाद, आंशिक भुगतान किया था। बीएसएफसीएससीएल पर अभी भी 10.5 करोड़ रुपये एवं उसका ब्याज बकाया है। भुगतान न होने के कारण, प्रबंधन पर वित्तीय बोझ बढ़ रहा है- विशेष रूप से राज्य सरकार द्वारा संचालित कंपनी से इसके सबसे बड़े उपभोक्ता यानि सरकार ने भी मिल से जूट के बैग खरीदना बंद कर दिया था, उक्त बातें “रामेश्वर मिल्स मजदूर यूनियन के महासचिव अमरनाथ सिंह, ने न्यूज़क्लिक को बताई।

मिल प्रशासन के उपाध्यक्ष त्रिलोकी नाथ सिंह ने हालांकि, रिश्वत की मांग के आरोप को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि सरकारी विभागों में नौकरशाही की लालफीताशाही के कारण भुगतान लंबित पड़ा है।

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मिल ने 5 जुलाई, 2017 को अपने कर्मचारियों को कार्य स्थगन का नोटिस देते हुए सूचित किया था कि पिछले एक साल में विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कारखाने का वित्तीय स्वास्थ्य बिगड़ गया है।

“ऐसे समय में जब विभिन्न मौजूदा समस्याएं- जिनमें अनुशासनहीनता और उत्पादन के लक्ष्य को हासिल न करना भी शामिल था- कंपनी को वित्तीय नुकसान पहुंचा रही थी, जबकि बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड, पटना द्वारा पिछले एक साल से मिल के बकाए का भुगतान नहीं किया गया जिसने मिल को आर्थिक रूप से निचोड़ दिया था। नतीजतन, मिल, बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड और उसकी लालफीताशाही की हठ की शिकार हो गई थी, और इसलिए उसका संचालन जारी रखना मुश्किल हो गया था। जब तक बिहार राज्य खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति निगम लिमिटेड पूर्ण भुगतान नहीं कर देता और श्रमिक/कर्मचारी अनुशासित नहीं हो जाते और उत्पादन लक्ष्य पूरा नहीं करते तब तक कारखाने का संचालन जारी रखना असंभव है। उपर्युक्त हालत ने प्रबंधन को ‘नो वर्क, नो पे’ के सिद्धांत के आधार पर 6 जुलाई, 2017 को 6 बजे से अपने काम के स्थगन के निर्णय को लागू करने के लिए मजबूर कर दिया है। प्रबंधन ने नोटिस में कहा है कि आवश्यक सेवाओं को जारी रखने के काम के लिए रखे गए कर्मचारियों को छोड़कर, काम का निलंबन सभी के लिए प्रभावी रहेगा,”। 

बंद करने के निर्णय से पहले, मिल प्रबंधन और मजदूर यूनियन के बीच कई दौर की बातचीत हुई थी, जिसमें या सहमति बनी कि अगर प्रबंधन किश्तों में पिछले भुगतान कर देता है तो वे उत्पादन के लक्ष्य को पूरा कर लेंगे। उनकी मांगों में 2010 से ग्रेच्युटी का भुगतान, जो सेवानिवृत्त हो गए हैं, सेवारत श्रमिकों को बोनस और काटे गए पीएफ का भुगतान शामिल हैं।

सिंह ने कहा, ''आश्वासन देने के बजाय, प्रबंधन लगातार टालमटोल करता रहा, वे उम्मीद कर रहे थे कि श्रमिक बिना भुगतान के उत्पादकता में वृद्धि कर लेंगे,'' सिंह ने उक्त आरोप लगाया, जो उस समय कीपर के रूप में मिल में काम कर रहे थे।

ग़ैर-कानूनी क़रार दिए जाने के आदेशों का पालन न करना

तालाबन्दी के फैसले को संबंधित सरकारी अधिकारियों के समक्ष चुनौती दी गई थी, सभी ने समय रहते प्रबंधन को यूनियन के प्रतिनिधियों के साथ बैठने और विवादों को हल करने का निर्देश दिया था। लेकिन इन आदेशों का प्रबंधन ने कथित रूप से अनुपालन नहीं किया था।

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बिहार सरकार के श्रम संसाधन विभाग के मुख्यसचिव ने 2017 में मिल प्रबंधन से दरभंगा में स्थित डिप्टी लेबर कमिश्नर के कार्यालय में उपस्थित होने और उनकी शिकायतों पर यूनियन प्रतिनिधियों के साथ बातचीत करने और मिल के संचालन को फिर से शुरू करने के लिए कहा था, लेकिन कोई प्रतिनिधि बातचीत के लिए नहीं आया। 9 अक्टूबर, 2017 को एक पत्र के माध्यम से यूनियन इस बात को मुख्यसचिव के ध्यान लाई, लेकिन बावजूद इसके मिल प्रबंधन के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई थी।

इसी तरह, सेवानिवृत्त श्रमिकों को पीएफ का भुगतान न करने का मुद्दा भी कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के क्षेत्रीय आयुक्त के संज्ञान में भी लाया गया। “हमारी शिकायत का जवाब देते हुए, विभाग नेके पास एक सतर्कता दल भेजा था। लेकिन प्रबंधन के किसी भी व्यक्ति ने जांच अधिकारियों से मुलाकात नहीं की और उन्हें कोई रास्ता भी नहीं सुझाया। उन्होंने हमसे मुलाकात की और हमने हमारे पास मौजूद जो भी रिकॉर्ड थे उन्हे उपलब्ध कराया। हमने 3 दिसंबर, 2018 को एक पत्र के माध्यम से पहले की गई शिकायत के संबंध में विभाग को याद दिलाया, लेकिन अभी तक कुछ भी नहीं हुआ है,” उक्त शिकायत कराते हुए यूनियन के महासचिव ने बताया।

लगातार विफलता के बाद, बिहार सरकार ने मिल प्रबंधन और श्रमिकों के बीच विवाद को स्वीकार करते हुए 15 जनवरी, 2018 को एक अधिसूचना जारी की थी और लॉक-आउट यानि तालबंदी को "निषिद्ध" यानि गैर-कानूनी घोषित किया था। “औद्योगिक विवाद प्रबंधन, एम/एस रामेश्वर जूट मिल्स, मुक्तापुर, समस्तीपुर, बिहार और रामेश्वर जूट मिल्स लेबर यूनियन के बीच विवाद मौजूद है, और आईडी अधिनियम (औद्योगिक विवाद अधिनियम,1947) धारा-10(3) के तहत 6 जुलाई, 2017 से तालाबंदी जारी है, उक्त अधिसूचना को "बिहार के राज्यपाल ने जारी किया जिसमें श्रम न्यायालय, बेगूसराय को विवाद का उल्लेख करते हुए मामले को निपटाने के लिए प्रेसित किया था।

अधिसूचना की प्राप्ति की तारीख से तीन महीने की अवधि भी तय की गई थी जिसके भीतर श्रम न्यायालय को राज्य सरकार को विवाद पर अपने निर्णय को भेजना था। सिंह ने बताया कि राज्यपाल के आदेश का उल्लंघन करने पर मिल प्रबंधन के खिलाफ क्या कार्रवाई की गई, यह जानने के लिए आरटीआई के तहत कई सवाल भी किए गए हैं।

हाल ही में, दरभंगा के डिप्टी लेबर कमिश्नर ने एक बार फिर से प्रबंधन को पत्र लिखकर मामले को उनके सामने पेश करने को कहा आई और सौहार्दपूर्ण वातावरण में यूनियन प्रतिनिधियों के साथ अपने कार्यालय में बातचीत करने को कहा है।

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रामेश्वर जूट मिल्स मजदूर यूनियन, मुक्तापुर, समस्तीपुर के अध्यक्ष श्री नौशाद आलम से मिली शिकायत में कहा गया है कि आपको सूचित किया जाता है कि रामेश्वर जूट मिल के लगभग 4,000 श्रमिकों के बोनस का भुगतान वित्तीय वर्ष 2016-17 और 2017-18 के लिए लंबित है।  यह भी कहा गया है कि बिहार सरकार द्वारा मिल की तालाबंदी को ‘निषिद्ध’ यानि गैर-कानूनी घोषित किया गया है। इसके बावजूद, आपने मिल की तालबन्दी खत्म नहीं की है,”अधिकारी ने यह 13 अगस्त, 2020 को लिखा था।

उन्होंने आगे कहा, "आपने 10 जून, 2019 को एक पत्र के माध्यम से अधोहस्ताक्षरी को अवगत कराया था, कि आप मिल के संचालन को फिर से शुरू करने के संबंध में अगस्त 2019 तक एक नोटिस जारी करेंगे। लेकिन आपने अभी तक मिल को फिर से खालू करने के लिए न तो कोई नोटिस जारी किया है और न ही श्रमिकों के बकाए के भूगतान को मंजूरी दी है। इसलिए, आपको एक बार फिर आदेश दिया जाता है कि 20 सितंबर, 2020 को दोपहर 1 बजे रामनगर, लहेरियासराय, दरभंगा में डिप्टी लेबर कमिश्नर के कार्यालय में यूनियन प्रतिनिधियों के साथ स्वयं या अपने किसी प्रतिनिधि के साथ आएं और बातचीत करें।”

मिल खोलने का प्रस्ताव—एक राजनीतिक चाल?

नवीनतम दिशा-निर्देश के बाद, मिल प्रबंधन ने यूनियन से बात की है, और दावा किया है कि मिल का अकाम बहुत जल्द फिर से शुरू होगा।

“हम मिल को फिर से शुरू करने में काफी गंभीर हैं और इसलिए, सभी तरह के प्रयास कर रहे हैं। हम गतिरोध खत्म करने के लिए सभी हितधारकों को विश्वास में ले रहे हैं। हम यूनियन के साथ बातचीत कर रहे हैं, जो मिल चलाने के मामले में बहुत सकारात्मक है। प्रबंधन ने वित्तीय वर्ष 2016-17 के लिए बोनस का पूरा भुगतान करने की सहमति दे दी है, जो कि 1 करोड़ रुपये है। अगले वित्तीय वर्ष का भुगतान किस्तों में किया जाएगा। मिल का कामकाज शुरू होने के बाद ही हम भुगतान कर पाएंगे। उक्त बातें, ”नवनियुक्त उपाध्यक्ष त्रिलोकी नाथ सिंह ने न्यूज़क्लिक को बताई।

उन्होंने यह भी दावा किया कि संयंत्र अगले 20-25 दिनों में अपना काम शुरू कर देगा।

हालांकि, यूनियन के प्रतिनिधियों को यकीन नहीं हो रहा है और वे इसे गोदाम में पड़े 2 करोड़ रुपये के जूट बैग बेचने की रणनीति मान रहे है। कारखाने के बंद होने के बाद, प्रबंधन ने जूट बैग को मिल परिसर से बार ले जाने की कोशिश की थी, लेकिन मजदूरों ने इसका विरोध किया गया, अंततः ऐसा नहीं होने दिया। उस समय स्थिति इतनी तनावपूर्ण हो गई थी कि गुस्साए मजदूरों को शांत करने के लिए पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा।

“प्रबंधन का दावा है कि अगले 20-25 दिनों में काम शुरू हो जाएगा। लगभग 70 लाख रुपये के बकाये की वजह से मिल में बिजली की आपूर्ति बंद कर दी गई है। मिल का लाइसेंस भी रद्द कर दिया गया है। इसलिए, यह एक आधारहीन दावा है, जो हम मानते हैं कि सरकार के इशारे पर किया गया है क्योंकि राज्य में विधानसभा चुनाव आ चुके हैं।

इलाहाबाद बैंक और केनरा बैंक से लिए कर्ज़ की लंबित पड़ी किश्तों और बिजली बिलों को न भरने की कथित चूक के बारे में पूछे जाने पर, त्रिलोकी नाथ सिंह ने यह कहते हुए टिप्पणी करने से इनकार कर दिया कि वह कंपनी के वित्तीय मामलों पर बोलने के लिए अधिकृत नहीं हैं।

बिजली विभाग के एक कार्यकारी अभियंता से जब पूछा गया कि क्या कंपनी ने उन्हें बिल के भुगतान या किसी भी तरह की छूट के लिए संपर्क किया है, तो पता चला कि मिल प्रबंधन ने अब तक ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है। “मिल को पहला कदम उठाना है। हम तभी कुछ कर पाएंगे जब कारखाने का प्रबंधन संपर्क करेगा। और अभी तक उनकी तरफ से ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया है, ”उन्होंने नाम न छापने का अनुरोध करते हुए बताया।

29 अगस्त को, राज्य सरकार में योजना और विकास और उद्योग मंत्री महेश्वर हजारी ने समस्तीपुर में पत्रकारों से कहा कि रामेश्वर जूट मिल एक सप्ताह में काम करने लगेगी, जो सप्ताह अब समाप्त हो चुका है।

मिल के उपाध्यक्ष के सात उन्होंने इस संबंध में मिल मालिक से बात की थी। उन्होंने स्वीकार किया कि सरकार की तरफ से मिल का कुछ भुगतान बकाया है। उन्होंने कहा, "मैंने राज्य के खाद्य और नागरिक आपूर्ति विभाग के प्रमुख सचिव से बात की थी जिन्होंने मुझे सूचित किया था कि विभाग को मिल को लगभग 10.26 करोड़ रुपये का भुगतान करना होगा और भुगतान प्रक्रिया शुरू हो चुकी है," उन्होंने दावा किया।

उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने बिजली बिल का भुगतान न कर पाने पर भी चर्चा की है। उन्होंने कहा, 'बिहार सरकार उद्योग को संकट से उबारने के लिए केंद्र से बात करेगी। बिहार सरकार भी सभी हर तरह की जरूरी सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध है,”। 

उन्होंने दावा किया था कि संयंत्र में रखरखाव का काम 30 अगस्त से शुरू होगा और वह तब खलेगा जब तक कि मिल का "शांत सायरन" फिर से न बजने लगे, जिसके बाद मिल फिर से काम करना फिर से शुरू कर देगी।

दिलचस्प बात यह है कि जिन तारीखों बात उन्होने की है वे पहले ही बीत चुकी हैं, लेकिन मिल अभी खुलनी बाकी है। मजदूरों ने मंत्री द्वारा किए गए लंबे-चौड़े दावों को चुनावी हथकंडा बताया है।

“महेश्वर हजारी जो मिल के इलाके से निर्वाचित हुए थे ने कभी भी इस क्षेत्र का दौरा करने की जहमत नहीं उठाई है। जब चुनाव का दौर शुरू होता है, तो ये नेता इलाके की यात्राओं पर आते है। मिल बंद होने के बाद 3 साल 6 महीनों तक वे में कहां थे? प्रिंस राज (समस्तीपुर जिले के लोक जनशक्ति पार्टी के सांसद) ने भी हमें आश्वासन दिया था कि वे संसद में मिल के बंद होने के मुद्दे को उठाएंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि इसका कामकाज फिर से शुरू हो जाए। यहां तक कि सायरन को बजा दिया गया था जब वे मिल के दौरे पर आए थे। लेकिन काम फिर भी शुरू नहीं हुआ। इस बार भी ऐसा ही होने की संभावना है। मिल के गुणवत्ता नियंत्रण विभाग से जुड़े एक मजदूर हरीश चंद्र साहनी ने कहा कि केवल यह संदेश देने के लिए कि संयंत्र चालू हो गया है, लेकिन मशीनें चालू नहीं होंगी, यह बताने के लिए सायरन बजाया गया था।

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उन्होंने कहा कि उन्हें अपने पिछले अनुभव के आधार पर प्रबंधन के साथ-साथ सरकार पर भी संदेह है। “मैंने आपको पहले ही प्रिंस राज के बारे में बताया था जिन्होंने भी ऐसा ही दावा किया था, लेकिन यह कभी हकीकत में नहीं बदला। 3 साल 6 महीने बीत जाने के बाद इतना बड़ा चलाना आसान नहीं है। मशीनरी के रखरखाव में कम से कम एक महीने का समय लगेगा। बिजली आपूर्ति शुरू नहीं की गई है। वर्तमान में, कंपनी के पास संयंत्र को चलाने का लाइसेंस नहीं है। हालत को देखते हुए तो यही लाता है कि मंत्री और प्रबंधन द्वारा किए गए सबी दावे चुनावी लाभ हासिल करने के अलावा कुछ नहीं है,”।

अन्य लोग भी मिल के प्रबंधन और सरकार पर विश्वास करने से इनकार करते हैं।

“कल्याणपुर विधानसभा क्षेत्र (हजारी) का विधायक, जिसके इलाके में जूट मिल है, राज्य सरकार में कैबिनेट मंत्री है। समस्तीपुर के सांसद एक ऐसी पार्टी से हैं जो सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की सहयोगी है। फिर भी, कारखाना पिछले 3 साल 6 महीने से बंद पड़ा हैं। फैक्ट्री के एक कर्मचारी संजय कुमार राय ने कहा कि यह सत्तारूढ़ पार्टी पर एक धब्बा है, जो राज्य के साथ-साथ केंद्र में भी है, जो अब लंबे दावे कर रहे है।

उन्होंने पटना में उनके सरकारी आवास पर हजारी से मिलने जाने पर एक घटना को याद दिलाया, वे उस समय योजना और विकास मंत्री थे। "उन्होंने मुझसे कहा कि ‘जूट मिल से तो हमें वोट ही नहीं मिला, फिर हम उसे क्यों खालू करवाएँ’," उन्होंने उक्त आरोप मंत्री पर लाते हुए बताया।

मजदूरों ने कहा कि अगर मिल को दोबारा नहीं खोला गया तो वे आने वाले चुनाव का बहिष्कार करेंगे। एक मजदूर ने कहा, "हमने 2019 के आम चुनावों का भी बहिष्कार किया था और इस चुनाव का भी करेंगे।"

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Shut Down Over 3 Years Ago, Bihar's Jute Mill Slowly Turning to Ruins

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