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आदर्श बहुओं की नहीं आदर्श पतियों की है कमी

हज़ारों साल पहले लिखे मनुस्मृति के यह तीन सबसे कम आपत्तिजनक वाक्य हैं: 1- पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, वृद्धा किसी भी स्वरूप में नारी स्वतंत्र नहीं होनी चाहिए...
आदर्श बहुओं की नहीं आदर्श पतियों की है कमी

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) की एक ऐसी खबर पिछले दिनों में छपी जो हिंदी-भाषी इलाके में चर्चा का विषय बन गयी. हर केन्द्रीय और राजकीय विश्वविद्यालय में निजीकरण की शुरुआत हो चुकी है. इसके चलते शिक्षा केवल महंगी नहीं हो रही है बल्कि अजीब तरह के और अनाप-शनाप विषय पढ़ाने के लिए दरवाज़े खुलने लगे हैं.

BHU से आने वाली खबर थी कि IIT-BHU में, जहां इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस, विज्ञान इत्यादि सीखने की लोग अपेक्षा करते हैं और जहां लड़के-लड़की दोनों ही इन विषयों में उच्च शिक्षा प्राप्त करने पहुँचते हैं, वहां ‘आदर्श बहू– तीन महीने में’ नामक कोर्स पढ़ाया जाएगा. 

आज-कल, ‘परंपरागत भारतीय मूल्यों से प्रेरित शिक्षा प्रणाली’ को तमाम शिक्षा संस्थानों में लागू करने की बात पहले से कहीं अधिक मंचों से कही जा रही है. केंद्र सरकार और कई राज्य सरकारें इस काम में जुट भी गयी हैं और वैदिक गणित, वैदिक विज्ञान इत्यादि के प्रचार-प्रसार में काफी ऊर्जा और साधन जुटाए जा रहे हैं.  हाल ही में, मुंबई में वैज्ञानिक विषयों पर एक सम्मलेन आयोजित किया गया था जिसमें विज्ञान पढ़ाने वाले सेवानिवृत्त शिक्षक लोगों को समझा रहे थे कि प्राचीन भारत में विमान किस तरह गधे से प्राप्त इंधन से उड़ाये जाते थे.

ऐसे माहौल में जब इस बात की खबर आयी की IIT-BHU में ‘आदर्श बहू – तीन माह का कोर्स’ पढ़ाया जाएगा तो उस पर तुरंत विश्वास कर लिया गया, औरविश्वास होते ही, चारों तरफ से लोगों ने आलोचनात्मक टिप्पणियों की बौछार शुरू कर दी. उन्होंने सवाल किया की आखिर इस तरह के कोर्स का औचित्य क्या है? युवतियों के लिए ‘आदर्श बहू’ बनना किस तरह का ‘करियर चॉइस’ है? केंद्र सरकार द्वारा संचालित, BHU और वह भी BHU के IIT जैसे प्रतिष्ठित शिक्षा संस्थान में क्या इस तरह के कोर्स का पढ़ाया जाना उसे शोभा देता है? इत्यादि इत्यादि...

यह आलोचना अनुचित नहीं थी. इस तरह का पाठ तो हमारे देश की महिलाओं और युवतियों को हज़ारों सालों से पढ़ाया जा रहा है.  चाहे धर्म-ग्रन्थ हों, या साधु-संतों के प्रवचन, चाहे घर के बुज़र्गों द्वारा दिए जाने वाले उपदेश हों या बचपन से ही माताओं द्वारा दी जा रही चेतावनी – सब के सब बच्चियों, लड़कियों, युवतियों और महिलाओं को आदर्श बहू बनने का एक जैसा पाठ ही तो पढ़ाते हैं.

हज़ारों साल पहले लिखे मनुस्मृति के यह तीन सबसे कम आपत्तिजनक वाक्य हैं:

1- पुत्री, पत्नी, माता या कन्या, युवा, वृद्धा किसी भी स्वरूप में नारी स्वतंत्र नहीं होनी चाहिए. –मनुस्मृति : अध्याय-९ श्लोक-२ से ६ तक. 

2- पति पत्नी को छोड सकता हैं, सूद (गिरवी) पर रख सकता है, बेच सकता है, लेकिन स्त्री को इस प्रकार के अधिकार नहीं हैं. किसी भी स्थिति में, विवाह के बाद, पत्नी सदैव पत्नी ही रहती है. – मनुस्मृति : अध्याय-९ श्लोक-४५. 

3- संपत्ति के अधिकार और दावों के लिए, शूद्र की स्त्रिया भी "दास" हैं, स्त्री को संपति रखने का अधिकार नही हैं, स्त्री की संपत्ति का मालिक उसका पति,पुत्र, या पिता है. – मनुस्मृति : अध्याय-९ श्लोक-४१६.

जब मनुस्मृति का हवाला दिया जाता है तो इसके उत्तर में यह कहा जाता है कि उसको तो अब कोई मानता नहीं, या उसमें तो बहुत कुछ बाद में (अंग्रेजों ने, मुसलमानों ने) जोड़ा गया है.  लेकिन, 1950 में ही RSS के गुरु गोलवलकर ने डॉ. आंबेडकर द्वारा रचित संविधान का विरोध करते हुए कहा था कि हमारे देश का न्याय-शास्त्र मनुस्मृति के अलावा कोई दूसरा हो ही नहीं सकता है. यही नहीं, कुछ ही दिन पहले, शिकागो, अमेरिका में RSS द्वारा आयोजित विश्व हिन्दू सम्मलेन के दौरान एक प्रमुख वक्ता ने कहा कि मनुस्मृति को पुन: देश का विधान बनाने की आवश्यकता है.

हिन्दू विवाह के दौरान वधु का ‘कन्यादान’ किया जाता है और उसे 100 पुत्रों की माँ बनने का आशीर्वाद दिया जाता है.

आधुनिक आदर्श बहू की क्वालिफिकेशन पहले से बहुत अधिक हो गयी है. पहले उसके लिए सेवा भाव से प्रेरित, गोरी, आज्ञाकारिणी, अच्छा भोजन बनाने वाली, पुत्र पैदा करने वाली होना आवश्यक था. आज इन सारे गुणों का भागी होने के अतिरिक्त उसमें अन्य क्वालिफिकेशन का होना आवश्यक है. उसे शिक्षित भी होना चाहिए (लेकिन अपने पति से थोडा सा कम), अपने इलाके के आलावा, अन्य राज्यों के भारतीय भोजन बनाने के साथ उसे चाइनीज़ खाना भी बनाना आना चाहिए. केक भी बनाना सीख ले तो बेहतर है.  उसे परम्परागत भी होना चाहिए और आधुनिक भी ताकि सास-ससुर-पति की सेवा के साथ वह पति के बॉस से पार्टी में बात भी कर सके. पति से अधिक ‘स्मार्ट’ न होकर उसे गंवारू भी नहीं होना चाहिए.  अगर उसकी सरकारी नौकरी लगी हो तो थोड़ा बाकी क्वालिफिकेशन में थोड़ी बहुत रियायत की जा सकती है. यह सब तो होना ही चाहिए लेकिन, सबसे बड़ी बात है, उसे ससुराल खाली हाथ नहीं आना चाहिए!

ऐसे में, जब ‘आदर्श बहू – तीन माह का कोर्स’ की खबर प्राप्त हुई तो उसकी आलोचना स्वाभाविक थी.  आलोचकों के तेवर देख, IIT-BHU के अधिकारियों ने तुरंत अपनी सफाई देते हुए कहा की इस कोर्स से उन्हें कोई मतलब नहीं था. इसका आयोजन तो उनके कैम्पस में उनके सहयोग से चल रहे भारतीय नवयुवकों को प्रशिक्षित करने वाली संस्था और काशी स्थित वनीता इंस्टिट्यूट आफ फैशन एंड डिजायन मिलकर कर रहे थे. फिर, इन दोनों संस्थाओं ने भी सफाई देनी शुरू कर दी कि वह तो महिलाओं की आत्म-निर्भरता को बढ़ाने के लिए उन्हें प्रशिक्षित करने में लगे हैं और इस तरह का कोई कोर्स उनके कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था.

सच तो यह है कि वनिता इंस्टीटूट आफ फैशन एंड डिजायन की ओर से इस कोर्स का विज्ञापन, पोस्टर के रूप में छपा था और इसकी प्रतियाँ अखबारों में भी छप चुकी हैं. इनमें बहू बनी, सजी-धजी, एक युवती की तस्वीर है और उसके बगल में लिखा है - IIT-BHU में चलाए जाने वाले कोर्स में पेशेवर, फैशन और विवाह-सम्बंधित निपुणता का प्रशिक्षण दिया जाएगा.

महिलाओं के लिए भारत दुनिया में सबसे अधिक खतरनाक देशों में से एक है. घरेलू हिंसा से पीड़ित परिवार कुल परिवारों में 60-70% हैं. बच्चियों से लेकर वृद्धाओं के साथ बलात्कार रोज़ की खबर है और पीड़ितों की हत्या अक्सर कर दी  जाती है. दहेज़ हत्याएं थमने का नाम नहीं लेती. ज़ाहिर है कि आदर्श बहुओं की नहीं, आदर्श पतियों की बहुत कमी है.  लेकिन इसके लिए युवको को किसी प्रकार का कोई कोर्स पढ़ाया नहीं जा रहा है. न शिक्षा संस्थानों में, न घरों में, न टीवी चैनलों पर. कहीं नहीं.

 

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