मेहरौली: क़रीब 600 साल पुरानी मस्जिद को बग़ैर नोटिस के तोड़ने का आरोप; भाग-एक
दिल्ली के मेहरौली बस स्टैंड के ठीक सामने बने आदम ख़ान के मकबरे के बगल से एक रास्ता संजय वन की तरफ जाता है। करीब आधा किलोमीटर चलने के बाद दिल्ली पुलिस की बैरिकेडिंग दिखाई देती है साथ ही दिल्ली पुलिस और सेना के जवान दिखाई देते हैं। वे किसी को भी जंगल की तरफ जाने नहीं दे रहे यहां तक की कुछ लोगों के घर उस तरफ हैं उन्हें भी घूम कर जाने के लिए कहा जा रहा था।
हम अंदर जाने के बारे में पूछताछ कर ही रहे थे कि देखा वहां बहुत से लोग आ रहे थे और एक दूसरे से कुछ पूछ कर मायूस होकर लौट रहे थे। इन लोगों में मुसलमानों के साथ ही हिंदू भी थे। कई लोग सालों से हर गुरुवार को यहां मौजूद 'आशिक अल्लाह' की दरगाह पर दुआ मांगने आते हैं। शेख़ शहाबुद्दीन जिन्हें लोग 'आशिक अल्लाह' के नाम से भी बुलाते हैं।
राणा सफवी अपनी किताब ' Where stones speak: Historical Trails in Mehrauli the First city of Delhi' में बताती हैं कि इस दरगाह का निर्माण सुत्लान कुतुबुद्दीन मुबारक शाह खिलजी ने 1317 में करवाया था, शेख़ शहाबुद्दीन को लोग 'आशिक अल्लाह' के साथ ही 'नज़रिया पीर' के नाम से भी जानते हैं।
600 साल पुरानी मस्जिद पर बुलडोज़र चलाने का आरोप
ख़बर है कि 30 जनवरी की भोर में मेहरौली में DDA ने अतिक्रमण हटाने के नाम पर कार्रवाई की, मस्जिद के इमाम ने बताया कि कार्रवाई में क़रीब 600-700 साल पुरानी मस्जिद अखूंदजी मस्जिद, बहरूल उलूम मदरसा और पुराने कब्रिस्तान की कुछ गुबंद वाली मज़ारों पर बुलडोज़र चला दिया।
अंखूदजी मस्जिद
बुलडोज़र कार्रवाई के बाद बैरिकेडिंग
हम ख़बर रिपोर्ट करने के लिए मेहरौली पहुंचे तो अंदर नहीं जाने दिया गया लेकिन हमने देखा कि 'आशिक अल्लाह' की दरगाह पर जाने के लिए पहुंच रहे लोग बैरिकेडिंग के पास से ही हाथ उठा कर दुआ मांग करे थे। जब लोगों को पता चला कि अंदर DDA का बुलडोज़र चला है तो उनकी बैचेनी बढ़ गई। वे जानना चाह रहे थे कि 'आशिक अल्लाह' की दरगाह सही सलामत है कि नहीं, लेकिन पुलिस-प्रशासन के मना करने पर कोई बैरिकेडिंग से आगे नहीं बढ़ा बल्कि वहीं से नम आखों के साथ लौट गया।
''सुबह 5 बजे के क़रीब हज़ारों की तादाद में पुलिस-फोर्स आ गई''
हमने अखूंदजी मस्जिद के इमाम ज़ाकिर हुसैन से बातचीत की। वे 30 जनवरी से आज तक की सारी घटना के बारे में बताते हैं। ज़ाकिर हुसैन, दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड की तरफ से नियुक्त इमाम हैं। वे 30 जनवरी के बारे में बताते हैं कि ''ये घटना सुबह 5 बजे के क़रीब हुई, मैं वहां मौजूद था, 5 बजे के करीब हज़ारों की तादाद में पुलिस-फोर्स आ गई, साथ में DDA वाले और 10 बुलडोज़र थे।''
''मैंने कुछ और सवाल किए तो उन्होंने मेरा मोबाइल ले लिया''
जिस वक़्त ठीक से दिन भी नहीं निकला था भारी संख्या में पुलिस-बल देखकर ज़ाकिर हुसैन और उस वक़्त मदरसे में मौजूद 22 बच्चे बेहद घबरा गए, इन बच्चों में 8 से 15 साल के बच्चे थे। जाकिर हुसैन बताते हैं कि ''मैंने पूछा सर क्या बात है आप लोग यहां क्यों आए हैं, तो वे कहने लगे कि ये DDA की लैंड है आप इस जगह को खाली कर दें। मैंने उनसे कहा कि ये तो वक़्फ की लैंड है, मैं दिल्ली वक़्फ़ बोर्ड का इमाम हूं, आप मेरा आईकार्ड देख सकते हैं, कागजात देख सकते हैं तो उन्होंने कहा कि ''हमें कुछ देखना-सुनना नहीं है ये ऊपर से ऑर्डर है, ये DDA की लैंड है ये आपको खाली करनी पड़ेगी और इसका डेमोलेशन होगा।'' मैंने कहा सर आप नोटिस दिखा दो तो वे कहने लगे ''नोटिस नहीं है इसके ऊपर से ऑर्डर हैं।'' मैंने उनसे कहा कि ये तो 700 साल पुरानी मस्जिद है तो उन्होंने कहा कि ''हम मस्जिद को कुछ नहीं कर रहे'', मैंने कुछ और सवाल किए तो उन्होंने मेरा मोबाइल ले लिया और हमारे जितने भी बच्चे मदरसे में थे उन सब को बाहर निकाल कर खड़ा कर दिया। सर्दी के मौसम में बच्चे इतना डर गए कि उन्हें संभालना मुश्किल हो गया।''
''कोई पुराना इतिहास नहीं रहने दिया''
उदास ज़ाकिर हुसैन आगे बताते हैं कि ''यहां मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान में कच्ची और पक्की कब्रें थी जिनमें 400-500 साल पुरानी क़ब्रें भी थीं उन्हें तोड़ दिया। सबको बिल्कुल बराबर कर दिया, वहां गुंबद बनी हुई दरगाहें थीं उनको भी ज़मीदोज़ कर दिया। कोई पुराना इतिहास नहीं रहने दिया। शेख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी, एक और बुजुर्ग की भी दरगाह को तोड़ दिया। शेख़ शहाबुद्दीन उर्फ आशिक अल्लाह जो बख़्तियार काकी के भांजे थे उनकी भी क़ब्र है यहां।'' (फिलहाल ये साफ नहीं हो पाया है कि 'आशिक अल्लाह' की दरगाह को नुक़सान पहुंचा है या नहीं।)
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गुरुवार को पूरा दिन दरगाह पर आने वालों का सिलसिला जारी रहा लेकिन पुलिस की बैरिकेडिंग की वजह से कोई आगे नहीं जा पाया। यहां हमें कुछ लोग मिले जो सालों से 'आशिक अल्लाह' की दरगाह पर आते रहे हैं। नोएडा से आए मोहम्मद इसरार ने हमें बताया कि ''मैं अक्सर गुरुवार को 'आशिक अल्लाह' की दरगाह पर आता रहता हूं, मैं यहां आया तो देखा कि बैरिकेडिंग की हुई थी और रास्ते बंद हैं, हमें बताया गया कि अंदर कुछ हुआ है उसके बारे में मुझे अभी पूरी जानकारी नहीं है, मैं तो यहां हमेशा ही आता रहता हूं, मुझे यहां बहुत सुकून महसूस होता है, मैं यहां दिल से जुड़ा हूं।''
आज़ादपुर मंडी से आई सोमवती ने बताया कि ''हम बड़ी परेशानी में हैं, बहुत आशा लेकर आए थे, अंदर जाने नहीं दे रहे।''
1993 से 'आशिक अल्लाह' की दरगाह पर आ रहे एक बुजुर्ग मोहम्मद कलाम ने नम आंखों से कहा कि ''यहां जिन बुजुर्गों की मज़ारें हैं हमें उनसे लगाव है, हम यहां आए तो हमें रोका गया, जिस दिन से पता चला लगातार आ रहे हैं लेकिन प्रशासन आगे नहीं जाने दे रहा है। हमें इस बात का ग़म है।'
मोहम्मद कलाम 'आशिक अल्लाह' के बारे में बताते हुए कहते हैं कि ''शेख़ शहाबुद्दीन उर्फ 'नज़रिया पीर' बाबा को लोगों ने नाम दिया है, यहां के ग़ैर मुस्लिम लोग भी यहां आते हैं।''
''हमारे साथ तो हर जगह जु़ल्म हो रहा है''
मयूर विहार से आए मोहम्मद आलम बताते हैं कि ''यहां हमारे पीर 'आशिक अल्लाह' बाबा हैं, यहां रास्ता बंद कर रखा है, ये तो सरासर जुल्म है, हम यहां आते-आते बूढ़े हो गए, बैरिकेडिंग कर रखी है, ये हमारे बुजुर्ग हैं, बाबा फरीद तक यहां आए हैं, ये तो सबके हैं, ये सबका भला करते हैं, यहां लोग फ़ैज़ उठाते हैं, 12 महीने लंगर लगता है, अंदर नहीं जाने दिया जा रहा है। दुख तो हो रहा है लेकिन हम यहीं से सलाम करके जा रहे हैं, हमारे साथ तो हर जगह जुल्म हो रहा है।''
''गै़रक़ानूनी तरीके़ से कार्रवाई की है, कोई नोटिस जारी नहीं किया गया''
एक स्थानीय और मदरसे से जुड़े व्यक्ति जफ़र बताते हैं कि ''इन्होंने गैरकानूनी तरीके से कार्रवाई की है, कोई नोटिस जारी नहीं किया गया, जब इनसे नोटिस के बारे में पूछा जा रहा था तो इनसे कोई जवाब नहीं दिया जा रहा था, कह रहे थे कि आगे से ऑर्डर हैं, हमारे पास भी तो डॉक्यूमेंट थे वो क्यों नहीं चेक किए, इस तरह से तो ग़ैर कानूनी कार्रवाई में प्रशासन ख़ुद उसमें शामिल हुआ।''
जब हमने जफ़र से पूछा कि प्रशासन लोगों को अब भी अंदर जाने से क्यों रोक रहा है तो उन्होंने कहा कि ''इन्हें इस बात का एहसास हो गया कि इन्होंने ग़लत काम कर दिया, किसी को भी अंदर नहीं जाने दे रहे। यहां तक की मीडिया को भी, मतलब कुछ ना कुछ तो छुपा रहे हैं, इन्होंने अंदर मजदूरों को लगा रखा है हमने ख़ुद इन्हें मज़दूरों को लेकर जाते हुए पकड़ा है, इन्होंने न सिर्फ डेमोलिशन किया बल्कि जितना भी मलबा था सब लेकर चले गए।''
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डेमोलिशन के वक़्त बच्चे बहुत डर गए थे
इन सबके बीच रह-रह कर ख़्याल आ रहा था कि जिस वक़्त प्रशासन की कार्रवाई हुई बहरूल उलूम मदरसे में क़रीब 20-22 बच्चे थे वो कहां गए? पता चला कि उन्हें करीब के एक मदरसे में शिफ्ट कर दिया गया, हम बच्चों से मिलने वहां पहुंचे तो पता चला कि कुछ बच्चों को उनके परिवार वाले ले गए लेकिन अब भी कई बच्चे वहां मौजूद थे। हमने सबसे छोटे बच्चों में से एक बच्चे से जब 30 जनवरी को हुए डेमोलिशन के बारे में बात करने की कोशिश की तो बच्चे के चेहरे पर ख़ौफ तारी हो गया, उसकी आंखें डबडबा गई बहुत मुश्किल से बस उसने अपना नाम बताया। जबकि एक दूसरे बच्चे ने बताया कि ''हम अपना कोई सामान नहीं निकाल पाए बस कुछ कपड़े उठा पाए, सब बच्चे रोने लगे थे, हम डर गए थे।''
दूसरे मदरसे में शिफ्ट किए गए बहरूल उलूम मदरसे के बच्चे
मदरसे में ज़्यादातर यतीम बच्चे
इस मदरसे में पहली से दसवीं तक के बच्चों को सभी विषय पढ़ाने वाले मुज़मिल सलमानी बताते हैं कि जिस मदरसे बहरूल उलूम को डेमोलिश किया गया उसमें उस दिन क़रीब 20 से 22 बच्चे मौजूद थे। वे ये भी बताते हैं कि देश के अलग-अलग हिस्सों से आए इन बच्चों में ज़्यादातर यतीम या फिर ग़रीब घरों के बच्चे हैं। वे बताते हैं कि जनवरी में ही मदरसे में बच्चों के लिए कंप्यूटर क्लास शुरू की गई थी और उसके लिए कुछ लैपटॉप मंगाए गए थे वो सब भी बुलडोज़र कार्रवाई में दफन हो गए।
26 जनवरी 2024 की तस्वीर
''कई बच्चों के पैरों में चप्पल भी नहीं थी''
30 जनवरी को भोर में जिस वक़्त डेमोलिशन शुरू हुआ मुज़मिल वहां मौजूद नहीं थे वे बताते हैं कि ''दोपहर 12 बजे के आस-पास इमाम साहब ने मुझे किसी पुलिस वाले के फोन से फोन किया क्योंकि उनका फोन तो ले लिया गया था तो उन्होंने मुझे कहा कि बच्चे भूखे हैं उनके लिए खाने का इतज़ाम कर दो, बच्चे उस वक़्त मदरसे के लगी हुई ईदगाह में थे तो मैंने मार्केट से खाना लिया और जहां बैरिकेडिंग थी वहां पहुंच गया, करीब आधे घंटे की बहस के बाद उन्होंने मुझे अंदर जाने की इजाजत दी पर उन्होंने मेरा फोन ले लिया और कहा कि आप अंदर फोन लेकर नहीं जा सकते। उन्होंने मुझे 20 मिनट का टाइम दिया कि आप 20 मिनट में वापस आ जाना। जब मैं मदरसे पहुंचा तो वहां कुछ नहीं था, मैं तो पहचान भी नहीं पा रहा था जबकि मैं 13 साल से वहां पर हूं और मैं ये अंदाज़ा नहीं लगा पा रहा था कि कहां पर मस्जिद थी कहां क्या था फिर मैंने पुलिस वालों से पूछा कि बच्चे कहां हैं तो उन्होंने बताया कि ईदगाह में शिफ्ट कर दिए हैं। ईदगाह बस मदरसे के बगल में ही है, बच्चे मुझे देखकर रोने लगे, वो लोग सिर्फ एक चादर पर बैठे हुए थे, उनके पास स्वेटर नहीं थे जैकेट नहीं थे जबकि कुछ बच्चों के पैरों में तो चप्पल भी नहीं थी वे सभी रोने लगे।''
''मदरसे में 8 से 15 साल के बच्चे थे''
30 जनवरी को डेमोलिशन के वक़्त मस्जिद के इमाम ज़ाकिर हुसैन के अलावा मदरसे में बच्चों को उर्दू और अरबी पढ़ाने वाले मौलाना मोहम्मद जावेद भी मौजूद थे, वे मदरसे में पिछले डेढ़ साल से बच्चों को पढ़ा रहे थे, उन्होंने बताया कि 30 जनवरी को प्रशासन ने सुबह लोगों के उठने से पहले कैसे बुलडोज़र कार्रवाई की। ''हम सुबह फ़ज़्र में 5 बजे उठ जाते हैं और बच्चे अपना सबक याद करने के लिए बैठ जाते हैं। उस दिन भी जैसे ही सुबह की नमाज़ का वक़्त हुआ मैंने एक बच्चे को अज़ान देने के लिए कहा जब वो अज़ान देकर आया तो उसने कहा कि बाहर कुछ लोग आए हुए हैं, फिर मैंने भी देखा कि बाहर पुलिस वाले थे तभी इमाम साहब भी आ गए। इमाम साहब से कहा गया कि ये मस्जिद, मदरसा और कब्रिस्तान DDA की जगह है और DDA अपना कब्जा चाहता है, इमाम साहब ने कहा कि नोटिस दिखा दीजिए तो उन्होंने कुछ नहीं दिया, उन्होंने हमें मदरसा खाली करने के लिए कहा तो मैंने उनसे पूछा कि क्या मस्जिद को भी तोड़ेंगे तो उन्होंने कहा कि हम मस्जिद को कुछ नहीं कर रहे, मदरसा, वुज़ू खाना टूटेगा जो नई चीज़ हैं उन्हें तोड़ेंगे लेकिन उन्होंने तो सबसे पहले मस्जिद ही तोड़ी, बच्चों ने जैसे ही पुलिस वालों को देखा डर गए, कुछ बच्चों ने तो रोना शुरू कर दिया। इन बच्चों में 8 से 15 साल के बच्चे हैं, मेरा और इमाम साहब का फोन भी ज़ब्त कर लिया था।''
जिस वक़्त हम बच्चों और मौलाना से बात कर रहे थे कुछ स्थानीय लोग भी मौजूद थे जो बेहद नाराज़ और उदास थे। कुछ लोगों ने कहा कि ''ये सरासर जुल्म है, नाइंसाफी है, कोई नोटिस नहीं दिया और इतनी ठंड के मौसम में पांच बजे आकर बच्चों को बाहर निकाल दिया बग़ैर किसी सूचना के, बग़ैर किसी नोटिस के।''
चूंकि मामला कोर्ट पहुंच चुका है तो कुछ लोगों ने कहा कि ''नुकसान तो हो गया अब इंसाफ यही है कि जैसे हमारी मस्जिद और मदरसा था उसे दोबारा बनवा कर दिया जाए, हमें कोर्ट पर भरोसा है।''
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली हाईकोर्ट ने 31 जनवरी को DDA के अधिकारियों से एक हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है। वहीं मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ही DDA के PRO ने कहा है कि अतिक्रमण का आकलन करने के लिए डीएम दक्षिणी दिल्ली की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था जिसने विभिन्न अवैध सरंचना को हटाने का सुझाव दिया था।
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जहां एक तरफ DDA इस कार्रवाई को अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई बता रहा है वहीं मस्जिद के इमाम का दावा है कि मस्जिद और वहां मौजूद मज़ारें कम से कम 400 से 600 साल पुरानी थीं।
1922 की ASI की लिस्ट में अखंदूजी मस्जिद का ज़िक्र
लेकिन इन सबके बीच इतिहास के पन्ने क्या कहते हैं, इतिहासकार क्या कहते हैं हमने ये भी जानने की कोशिश की। ये मस्जिद वहां सदियों से मौजूद थी इसका सबसे पुख्ता सबूत ASI का 1922 का एक डॉक्यूमेंट है जिसे ASI (Archaeological survey of India) के असिस्टेंट सुपरिटेंडेंट ने संकलित (compile) किया था जिनका नाम था मौलवी जफ़र हसन और उस डॉक्यूमेंट में अखंदूजी मस्जिद का जिक्र है।
1922 की ASI की लिस्ट जिसमें अखूंदजी मस्जिद का ज़िक्र है
अखंदूजी मस्जिद और वहां मौजूद दूसरी ऐतिहासिक इमारतें जिन्हें DDA ने अतिक्रमण के नाम पर ज़मीदोज़ कर उनके सदियों पुराने होने के ऐतिहासिक सबूत हैं।
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