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भूख का खेल? सरकार सितंबर के बाद बंद कर सकती है मुफ़्त राशन योजना

वित्त मंत्रालय द्वारा जारी एक नोट में कथित तौर पर भोजन और अन्य सब्सिडी पर बहुत अधिक ख़र्च के ख़िलाफ़ चेतावनी दी गई है।
Dhamendra Pradhan distributing
ढेंकनाल में पीएमजीकेएवाई पीडीएस केंद्र में लाभार्थियों को चावल वितरित करते धर्मेंद्र प्रधान

राशन कार्ड धारकों को दिए जाने वाले रियायती राशन के अलावा प्रत्येक व्यक्ति को 5 किलो खाद्यान्न उपलब्ध कराने की योजना सितंबर के बाद समाप्त हो सकती है। जिसे प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) कहा जाता है, और जिसे अप्रैल-मई 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान शुरू किया गया था और इसे हर छह महीने में बढ़ाया गया था। 80 करोड़ से अधिक लोगों तक इसका लाभ पहुंचने की सूचना है और यह व्यापक रूप से लोकप्रिय योजना है।

इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के एक आंतरिक नोट में तर्क दिया गया है कि अत्यधिक खर्च ने पहले ही खाद्य सब्सिडी और उर्वरक सब्सिडी को बढ़ा दिया है, और इस तरह के उपायों के साथ पेट्रोल और डीजल पर कर रियायतें देने को "विकास-सहायक पूंजीगत व्यय की रक्षा के लिए, लेकिन राजकोषीय फिसलन से बचने के लिए, यह चेतावनी देते हुए कि उच्च राजकोषीय घाटा चालू खाता घाटे को बढ़ा सकता है" को युक्तिसंगत (इसे कटौती के रूप में पढ़ा जाए) करना जरूरी है।

इसका मतलब स्पष्ट है कि मोदी सरकार ने इस बदनाम सिद्धांत से प्रेरित होकर कल्याणकारी उपायों पर खर्च को कम करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया है, क्योंकि नोट के मुताबिक   सरकारी खर्च को कम करने और राजकोषीय घाटे को नियंत्रित करने की जरूरत है ताकि निजी क्षेत्र को आगे बढ़ने के लिए 'स्पेस' मिल सके।

पीएमजीकेएवाई पिछले दो वर्षों की कोविड महामारी की अवधि के दौरान एक जीवन रक्षक योजना साबित हुई थी। कुछ विश्लेषणों के अनुसार, कई राज्यों में हाल के विधानसभा चुनावों के दौरान, इसने सत्तारूढ़ दल को समर्थन बढ़ाने में मदद की है। इस जमीनी समर्थन से प्रेरित होकर, मोदी सरकार ने आखिरी बार मार्च 2022 में इस योजना को फिर से बढ़ा दिया था। सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत, 35 किलोग्राम तक खाद्यान्न को सब्सिडी वाली कीमतों पर जारी किया जाता है जो कीमतें अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग होती हैं। यदपि, अधिकांश परिवारों के लिए यह पर्याप्त नहीं था, और इसलिए पीएमजीकेएवाई ने उन परिवारों को बहुत आवश्यक अतिरिक्त खाद्यान्न प्रदान किया, जिन्होंने विस्तारित लॉकडाउन और महामारी की तबाही में अपनी सारी कमाई खो दी थी।

वित्त मंत्रालय का विचार है कि महामारी समाप्त हो गई है, अर्थव्यवस्था वापस लौट रही है, और इसलिए वास्तव में अतिरिक्त मुफ्त अनाज प्रदान करने की कोई जरूरत नहीं है। यह विचित्र दृष्टिकोण इस तथ्य की उपेक्षा करता है कि देश चौंका देने वाली बेरोजगारी और बढ़ती कीमतों की दोहरी मार की चपेट में है, जिसने सार्वजनिक मांग को दबा दिया है और इसलिए बहुप्रचारित रिकवरी के किसी भी अवसर को मजबूती से रोक दिया है।

क्या नोट में व्यक्त किए गए विचार, जैसा कि रिपोर्ट किया गया है, आधिकारिक नीति है या नहीं? वर्तमान में, यह केवल डीईए की राय हैं, शायद सरकार में बैठे उन मंदारिनों की सोच को दर्शाते हैं जो विभाग/मंत्रालय का वास्तविक संचालन करते हैं। लेकिन तथ्य यह है कि ये राय अभी तक पत्रकारों के बीच में छोड़ी गई है, जिसका मतलब है कि इन विचारों को नीति के रूप में स्वीकार करने के लिए पैरवी चल रही है। यह भी संभव है कि यह रहस्योद्घाटन, डीईए की  प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए भेजा गया है जो एक जांच का गुब्बारा है या शायद इस के जरिए एक राय बनाने की कोशिश/जरूरत है कि खर्च में कटौती कितनी जरूरी है।

यह दावा किया गया है कि नोट में बढ़ी हुई सब्सिडी के कई उदाहरण सूचीबद्ध किए गए हैं जो देश की वित्तीय स्थिति को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इनमें यह तथ्य भी शामिल है कि हालांकि 2022-23 में खाद्य सब्सिडी को घटाकर 2.07 लाख करोड़ रुपये कर दिया गया था (जोकि पिछले वर्ष की 2.86 लाख करोड़ रुपये से कम है), सितंबर तक पीएमजीकेएवाई के विस्तार ने सब्सिडी बिल को बढ़ाकर 2.87 लाख करोड़ रुपये कर दिया था। नोट में कथित तौर पर कहा गया है कि सितंबर के बाद 6 महीने के और विस्तार का मतलब 80,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च होगा, जिससे कुल खाद्य सब्सिडी बढ़कर 3.7 लाख करोड़ रुपये हो जाएगी।

यह बताता है कि उर्वरक सब्सिडी पहले ही 1.05 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.15 लाख करोड़ रुपये हो गई है। यह याद किया जा सकता है कि यूक्रेन युद्ध की शुरुआत के बाद रूस और बेलारूस (जो कुछ आवश्यक उर्वरकों के मुख्य निर्यातक हैं) पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बाद कुछ उर्वरकों की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में बड़ा उछाल आ गया था। 

कथित तौर पर नोट में यह भी उल्लेख किया गया है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में हालिया कटौती से सरकारी खजाने को 1 लाख करोड़ रुपये का नुकसान होगा। यह एक बेतुका तर्क है क्योंकि यह सरकार ही थी जिसने राजस्व बढ़ाने के लिए पेट्रोल-डीजल की कीमतें कई बार बढ़ाई थीं, जिससे पूरा वित्तीय बोझ लोगों पर डाल दिया गया था।

कहने की जरूरत नहीं है कि ये सभी मामले सरकार की अपनी नीतियों के कारण भारी कठिनाइयों का सामना कर रहे आम लोगों के लिए बहुत जरूरी राहत से संबंधित हैं। इस प्रकार यह नोट मोदी सरकार में प्रमुख आर्थिक नीति सोच का प्रतिबिंब है, जो लोगों को सरकारी खजाने से दी जा रही आर्थिक राहत के लिए हमेशा प्रतिरोधी है। बेशक, अंततः इसे राजनीतिक विचारों के साथ संतुलित किया जाएगा - अगर चुनाव जीतना है, तो यह सोच ठंडे बस्ते में चली जाएगी, और लोकलुभावनवाद हावी हो जाएगा। हालांकि लंबी अवधि में सभी कल्याणकारी योजनाएं लगातार दबाव का सामना कर रही हैं। घरेलू उपयोग के लिए सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडर की बहुप्रचारित उज्ज्वला योजना विफल हो गई है क्योंकि सब्सिडी चुपचाप वापस ले ली गई थी। इसमें जो कुछ भी बचा था वह केवल एक मुफ्त कनेक्शन था।

जो भी हो, मोदी सरकार का खुद का रिकॉर्ड इतना विश्वास पैदा नहीं करता है कि डीईए नोट (जैसा कि रिपोर्ट किया गया है) में दर्ज इन विचारों को गंभीरता से नहीं लिया जाएगा। यदि ऐसी  स्थिति मेंपैदा होती है तो देश भर के लोग बहुत गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर सकते हैं। सितंबर के बाद स्टेपल के रूप में राहत की आधारशिला मिटा दी जाएगी। गैर-आयकर भुगतान करने वाले परिवारों को आय सहायता प्रदान करने और पीडीएस टोकरी का विस्तार करने की मांग को स्वीकार करने से दूर, जैसा कि ट्रेड यूनियनों और किसान संगठनों ने बार-बार आवाज उठाई है, तो लोगों के सामने यह एक प्रतिगामी कदम होगा जो गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं। यह याद रखना चाहिए कि इस सीजन में पहले ही गेहूं की खरीद कम हो चुकी है, और अगर पर्याप्त स्टॉक के अभाव में पीडीएस आवंटन में गिरावट आती है तो इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए। यह करोड़ों परिवारों के सामने एक विस्फोटक संकट पैदा करेगा जिसे मोदी सरकार - अपनी कथित सफलताओं के प्रति आश्वस्त और कठोर वास्तविकता से अंधी सरकार - को इस स्थिति को संभालना मुश्किल हो जाएगा।

अंग्रेजी में प्रकशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें: 

Hunger Games? Govt may Shut Down Free Ration Scheme After September

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