Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

भारतीय नौसेना के स्वदेशीकरण से एआईपी प्रणाली वाले पनडुब्बियों को ज़बरदस्त प्रोत्साहन  

‘भारतीय नौसेना ने 2030 तक जहाज ख़रीदारी-वाले सैन्यबल से जहाज-निर्माण वाले सैन्यबल में रूपांतरित होने की एक तयशुदा प्रक्रिया को अपनाया था। हालांकि, इस लक्ष्य को पाने में भले ही देरी हुई हो, मगर भारतीय शिपयार्ड में हालिया निर्मित ज़्यादातर जहाजों के साथ यह कामयाबी अब दूर नहीं दिखती।’
भारतीय नौसेना
फ़ोटो ट्विटर के सौजन्य से

लार्सन एंड टुब्रो (L&T) की अगुवाई में कई निजी और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के सहयोग से रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) द्वारा एक अभिनव एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन (AIP) प्रणाली को स्वदेशी रूप से विकसित किया गया है। इस अग्रणी सिस्टम इंटीग्रेटर ने 8 मार्च को अपने ज़मीन-आधारित प्रोटोटाइप का एक अहम परीक्षण कामयाबी के साथ कर लिया है। इन एआईपी पावर प्लांट के परीक्षणों में इस प्रणाली के दोनों तरह की विशिष्टतायें थीं। इसकी पहली ख़ासियत इसका टिकाऊ होना है,यानी कि 14 दिनों से ज़्यादा की बड़ी अवधि के लिए कम बिजली पर इसका संचालन मुमकिन है और दूसरी ख़ासियत यह कि इसमें भारतीय नौसेना द्वारा ज़रूरत के हिसाब से दो दिनों के लिए अधिकतम पावर मोड का होना है।

इस 270 किलोवाट के ज़मीन आधारित प्रोटोटाइप (LBP) को मुंबई से तक़रीबन 50 किलोमीटर दूर अंबरनाथ में डीआरडीओ की नौसेना सामग्री अनुसंधान प्रयोगशाला (NMRL) द्वारा विकसित किया गया है। इस परियोजना को 2010 में 191.6 करोड़ रुपये की की सीमांत लागत की स्वीकृत परियोजना के तहत आगे बढ़ाया गया था, जिसकी लागत बाद में बढ़कर 210 करोड़ रुपये हो गयी और इस साल जून में यह परियोजना पूरी होने वाली है। इसके बाद, मैरिनाइज़्ड इंजीनियर्ड एआईपी एनर्जी मॉड्यूल (MAREEM), जहाज़ स्थित एआईपी सिस्टम का उत्पादन से पहले वाले एक ऐसे संस्करण के परीक्षण की एक श्रृंखला के साथ एक परीक्षण आधार को पनडुब्बी की प्रतिकृति पर डिज़ाइन और स्थापित किया जायेगा, जिसके बाद उत्पादन संस्करण को विकसित किया जाना संभव हो पायेगा और परिचालन पनडुब्बियों पर फ़िट होने के लिए इसे इस उद्योग के भागीदारों द्वारा निर्मित किया जायेगा। इस एआईपी को एक ऐसे मॉड्यूलर इकाई के रूप में डिज़ाइन किया गया है, जिसे पनडुब्बियों या दूसरे अनुप्रयोगों में भी पनडुब्बियों के विशिष्ट जहाज़ के ढांचे वाले वर्गों में फिट किया जा सकता है।

इस एक दफ़ा वाली गोपनीय परियोजना 75(I) के तहत भारत जल्द ही रूस, फ़्रांस, जर्मनी, स्पेन और दक्षिण कोरिया के पांच चुनिंदा मूल उपकरण निर्माताओं के सहयोग से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण (टीओटी) के साथ रडार से बचने वाले छह डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का निर्माण करने वाले समूह में शामिल हो जायेगा। ये पनडुब्बियां एआईपी सिस्टम से लैस होंगी। इसके अलावा, छह स्कॉर्पीन श्रेणी के डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों का उत्पादन पहले ही परियोजना 75 के तहत सार्वजनिक क्षेत्र के मझगांव डॉक्स शिपबिल्डर्स लिमिटेड (एमडीएल) के तहत फ़्रास के नेवल ग्रुप से प्रौद्योगिकी (टीओटी) के हस्तांतरण के तहत चल रहा है, दिलचस्प है इनमें से एक पीएसयू भी है। इनमें से चार या तो पहले ही नौसेना को सौंपा जा चुका है या फिर सौंपा जाने वाला है, और उम्मीद है कि अंतिम दो कलवरी श्रेणी की पनडुब्बियां डीआरडीओ एआईपी के साथ 2023 में शुरू होंगी, जबकि पहले वाले एआईपी के साथ कुछ नये घटक भी बाद में जोड़े जा सकते हैं।

एआईपी की अहमियत

जैसा कि नाम से ही पता चलता है, एआईपी सिस्टम सतह या स्नोर्कल (मुहं में लगाने की लंबी नली जो तैरते वक्त पानी के नीचे सांस लेने में मदद करती है) के बिना समुद्र में गश्त लगाने वाली कम गति पर भी तीन सप्ताह तक पानी के भीतर रहने वाले पनडुब्बियों को बने रहने में सक्षम बनाता है। कम से कम हर चार दिन में डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियों के मामले में ऐसा ही होता है। परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बियां पानी के भीतर लंबे समय तक रहने में सक्षम होती हैं, जो बड़े पनडुब्बियों के लिए अक्सर 80 से 90 दिनों या उससे ज़्यादा के बीच सतह के बिना और गहरे पानी में भी लंबी अवधि के मिशन के लिहाज़ से उत्कृष्टत होते हैं। भले ही उनके यांत्रिक पंप जो बहुत ज़रूरी शीतलक को प्रसारित करते हैं, इसके बावजूद ये कम से कम शोर करते हैं। परमाणु ऊर्जा संयंत्र निश्चित ही रूप से अत्यंत शक्तिशाली होते हैं और ऑक्सीजन बनाते हैं, पनडुब्बी के भीतर हवा आदि को संचारित करते हैं। आधुनिक डीज़ल-इलेक्ट्रिक पनडुब्बियां भी पानी के नीचे रहते हुए लेड-एसिड या लिथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल करती हैं, और थोड़े समय के लिए बेहद ख़ामोश रहती हैं, लेकिन ऑक्सीजन या हवा को ले जाने और ख़ुद को अक्सर विरोधी ताक़तों के सामने उजागर करते हुए बैटरी को रिचार्ज करने के लिए अपने इंजन को चलाने की ख़ातिर इसे बार-बार सतह की ज़रूरत होती है। हालांकि, एआईपी वाली पनडुब्बियां बहुत लंबे समय तक पानी के नीचे रह सकती हैं, क्योंकि वे ऐसी ऊर्जा प्रणालियों से सुसज्जित होती हैं, जिन्हें बाहरी हवा या ऑक्सीजन की ज़रूरत नहीं होती है। वैसे, ये ज़मीन आधारित लक्ष्य या अन्य पारंपरिक पनडुब्बियों के ख़िलाफ़ निकट-तटीय इलाक़े के लिए घातक होती हैं।

इसलिए, एआईपी पावर सिस्टम उन्नत पनडुब्बी प्रौद्योगिकी की एक बानगी है, इस समय ये पनडुब्बियां सिर्फ़ रूस, चीन, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन और स्पेन के पास है। इनमें से चीन ने पाकिस्तान की नौसेना की पनडुब्बियों के लिए एआईपी सिस्टम की आपूर्ति की है,जबकि अन्य देश पनडुब्बियों के अंतर्राष्ट्रीय सैन्य उपकरण ब़ाजार के प्रमुख खिलाड़ी हैं।

स्वदेशी तौर पर इस क्षमता को हासिल करना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम इसलिए है,क्योंकि एआईपी सिस्टम का आयात करना बहुत महंगा होता है, और भारत की अपनी परमाणु-संचालित पनडुब्बी विकसित करने के बाद पनडुब्बी प्रौद्योगिकियों में तकनीकी आत्मनिर्भरता की दिशा में यह एक बड़ी छलांग है। यह डीआरडीओ की कई कामयाबियों के बीच एक और कामयाबी है, हाल के दिनों में डीआरडीओ कई स्वदेशी प्रौद्योगिकी विकास परियोजनाओं के एक दशक या उससे भी ज़्यादा के ज़बरदस्त अनुसंधान और विकास (R&D) कार्य के बाद कामयाबी के साथ आगे बढ़ रहा है।

ईंधन प्रकोष्ठ (fuel cells)

जैसा कि उल्लेख किया जा चुका है कि सरफेसिंग या स्नोर्केलिंग पूरी तरह से निमग्न संचालन के बीच के अंतराल को काफ़ी हद तक कम करते हुए एआईपी सिस्टम पनडुब्बियों की ख़ामोशी और पता लगाने की इसकी न्यून क्षमता को बढ़ा देता है, इसे ही "इनडिस्क्रेशन रेशियो" कहा जाता है। ईंधन प्रकोष्ठों (fuel cells) के इस्तेमाल से यह क्षमता और भी ज़्यादा बढ़ जाती है, जो अपनी ऊर्जा का उत्पादन तब तक करते रहते हैं, जब तक कि ईंधन की आपूर्ति नहीं हो जाती, और इस तरह, उन पारंपरिक बैटरी की ज़रूरत को ख़त्म कर दिया जाता है, जिन्हें रिचार्ज किये जाने की ज़रूरत होती है।

ईंधन प्रकोष्ठ ऐसे विद्युत रासायनिक उपकरण होते हैं, जो किसी ईंधन (आमतौर पर हाइड्रोजन) की रासायनिक ऊर्जा को रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से एक इलेक्ट्रोलाइट के हस्तक्षेप से ऑक्सीकरण एजेंट (आमतौर पर ऑक्सीजन) के साथ मिलकर बिजली में परिवर्तित कर देता है। जब हाइड्रोजन और ऑक्सीजन का इस्तेमाल किया जाता है, तो सह-उत्पादों के तौर पर पानी और गर्मी पैदा होते हैं। आने वाले दिनों में कार्बन मुक्त दुनिया के लिए, ऑटोमोबाइल और विमान जैसे विभिन्न अनुप्रयोगों में इस्तेमाल को लेकर हाइड्रोजन-आधारित ईंधन प्रकोष्ठों को सबसे ज़्यादा आशाजनक ग़ैर-प्रदूषणकारी उन ऊर्जा स्रोतों में देखा जाता है, जहां सौर ऊर्जा का इस्तेमाल करना मुश्किल हो सकता है। बैटरी की तरह, ईंधन कोशिकाओं को कई इकाइयों में एक साथ जोड़ा जा सकता है, जिन्हें स्टैक कहा जाता है।

पनडुब्बी-आधारित एआईपी में ऑक्सीजन और हाइड्रोजन ले जाने की गुंज़ाइश की सीमा एक बड़ी समस्या है। डीआरडीओ/एनएमआरएल एआईपी सिस्टम ने संचालन के दौरान पोत पर हाइड्रोजन का उत्पादन करके इस समस्या से निपट लिया है। इस एआईपी में हाइड्रोजन को इकट्ठा किये हुए सोडियम बोरोहाइड्राइड पाउडर और कथित फॉस्फोरिक एसिड ईंधन सेल (पीएएफ़सी) कहे जाने वाले इलेक्ट्रोलाइट के रूप में संग्रहित फ़ॉस्फ़ोरिक एसिड के साथ संग्रहीत ऑक्सीजन से बनाया जाता है। यह ख़ासियत इस डीआरडीओ एआईपी को इस समय प्रचलित सबसे उन्नत प्रणालियों में से एक बना देती है। हालांकि, ऐसा नहीं कि यह विधि दुनिया की एकलौती विध है, लेकिन एनएमआरएल/डीआरडीओ द्वारा इस तकनीक का स्वदेशी रूप से विकसित किया जाना, एक बड़ी उपलब्धि है तो है ही, जिसका किसी बिन्दु पर कई अन्य सैन्य उपयोगों के साथ-साथ नागरिकों के लिए भी इस्तेमाल हो सकेगा।

आत्मनिर्भरता की ओर

भारत की तेजी से घट रही पनडुब्बी बेड़ों की संख्या एक गंभीर चिंता का विषय है, वह भी ऐसे समय में जब दोनों तरफ़ के सुरक्षा माहौल को काफ़ी हद तक खराब होते देखा जा रहा है, और नौसेना ने पश्चिम में हॉर्न ऑफ़ अफ़्रीका से लेकर सुदूर पूर्व में मलक्का जलडमरूमध्य तक सुरक्षा हितों को लेकर अपनी दिलचस्पी दिखा रही है। विदेशों से ख़रीद पर भारत के प्रयासों में इस प्रक्रिया की थका देने वाली बदनाम प्रणाली, लालफ़ीताशाही से बंधी नौकरशाही और निहित स्वार्थों के कारण होने वाले हस्तक्षेप से लेट-लतीफ़ी देखी जाती रही है। यहां तक कि P75I परियोजना को कुछ बड़ी कॉर्पोरेट संस्थाओं की तरफ़ से अन्य गंभीर बोली लगाने वालों के बीच ख़ुद को सूचीबद्ध करने के लिए चल रहे लगातार गंभीर प्रयासों के चलते काफी देरी से गुज़रना पड़ा, ऐसी स्थिति तब थी,जब एक तरफ़ जहां गंभीर वित्तीय और प्रबंधकीय मुद्दों वाली परेशानी थी, और दूसरा कि उनके पास जहाज-निर्माण में बिल्कुल भी कोई अनुभव नहीं है। भारतीय नौसेना ने 2030 तक जहाज़ की ख़रीदारी करने वाले सैन्यबल से जहाज का निर्माण करने वाले सैन्यबल में बदलने की एक तयशुदा प्रक्रिया को अपनाया था। हालांकि, इस लक्ष्य को पाने में भले ही देरी हुई हो, मगर भारतीय शिपयार्ड में हालिया निर्मित ज़्यादातर जहाजों के साथ यह कामयाबी अब दूर नहीं है।

पनडुब्बियों को प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षमता दोनों ही के सिलसिले में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। परमाणु ऊर्जा से चलने वाली पनडुब्बी, अरिहंत और एआईपी प्रणाली से लैस प्रोजेक्ट 75 स्कॉर्पीन पनडुब्बी और प्रोजेक्ट 75I पनडुब्बी को स्वदेशी तरीक़े से विकसित किये जाने और बनाने में मिली कामयाबी के बाद भारतीय नौसेना स्वदेशीकरण की तरफ़ बढ़ते अपने इस सफ़र के आख़िरी पड़ाव के क़रीब है। माना जाता है कि एक विदेशी ओईएम से टीओटी को शामिल करने वाली परियोजना 75 आई, पनडुब्बियों के लिए आख़िरी टीओटी परियोजना साबित हो,जिसके बाद भारत ने विभिन्न प्रकार की पनडुब्बियों के स्वदेशी डिज़ाइन और निर्माण को लेकर एक पूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की स्थापना हो सके।

इस एआईपी परियोजना में पहले अरिहंत परमाणु पनडुब्बी और कई अन्य नौसैनिक जहाजों का निर्माण और आने वाले दिनों में P75I परियोजना के लिए संभावित बोली लगाने वाले के रूप में बतौर सिस्टम इंटीग्रेटर एलएंडटी की प्रमुख भूमिका उल्लेखनीय हैं। एलएंडटी एक ग़ैर-मामूली कंपनी के तौर पर उभर रही है। इसके ग़ैर-मामूली होने की मिसाल इसका निजी क्षेत्र में एक प्रमुख स्वदेशी रक्षा का ऐसा उदाहरण है, जो आयातित प्रौद्योगिकियों पर निर्भर नहीं है और यह स्वदेशी विकास के मुश्किल समय में भी तेज़ी से आगे बढ़ने के लिए तैयार है।

डी.रघुनंदन वरिष्ठ पत्रकार हैं। आलेख में व्यक्त विचार इनके निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

Indian Navy’s Indigenisation Push Gets Boost with AIP System for Submarines

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest