आज़मगढ़ हवाई अड्डे का विरोध कर रहे किसान नेताओं ने लगाया पुलिस पर मारपीट, नज़रबंद करने का आरोप

आजमगढ़ में किसानों की जमीन अधिग्रहित कर हवाई अड्डा का विस्तार करने के विरोध में 73 दिनों से आंदोलन की अगुवाई कर रहे किसान नेता राजीव यादव और विनोद यादव के साथ पुलिस गुंडों की तरह पेश आई। 24 दिसंबर 2022 को दोनों किसान नेताओं के साथ पुलिस ने जमकर मारपीट की। कई घंटे तक टार्चर करने के बाद रात करीब आठ बजे उन्हें निजी मुचलके रिहा किया गया। किसान नेता राजीव यादव करीब 15 किसानों के साथ वाराणसी के अंबेडकर चौराहे से निकाली जाने वाली किसान यात्रा में शामिल होने आए थे। लौटते समय बनारस के चोलापुर के पास उनकी गाड़ी को ओवरटेक किया गया और उनकी गाड़ी की चाबी छीन ली गई।
इससे पहले बनारस में मैग्सेसे एवार्डी और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडेय सहित आधा दर्जन किसान नेताओं को वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस ने शनिवार की सुबह कैंट रेलवे स्टेशन से हिरासत में लेकर पुलिस लाइन गेस्ट हाउस में उन्हें नजरबंद कर दिया। उन्हें किसी से भी मिलने और बातचीत करने पर पाबंदी लगा दी गई। साथ ही उनका मोबाइल फोन भी छीन लिया गया। काफी जद्दोजहद के बाद अपराह्न एक बजे बनारस पुलिस उन्हें लेकर लखनऊ चली गई।
आजमगढ़ में हवाई अड्डे के विस्तार के विरोध में 24 दिसंबर 2022 से वाराणसी के कचहरी स्थित अंबेडकर पार्क से तीन दिवसीय पदयात्रा शुरू होने वाली थी। इस पदयात्रा का पहला पड़ाव चंदवक, दूसरा निजामाबाद और तीसरा मंदुरी (आजमगढ़) था। 27 दिसंबर को यह पदयात्रा आजमगढ़ के खिरिया की बाग पहुंचने वाली थी, जहां विशाल सभा होनी थी। पदयात्रा में शामिल होने के लिए किसान नेता राजीव यादव और उनके कई साथी बनारस आए। राजीव रिहाई मंच के मुखिया भी हैं। इनके नेतृत्व में आजमगढ़ स्थित खिरिया की बाग में 73 दिनों से किसानों का धरना, प्रदर्शन और आंदोलन चल रहा है। 24 दिसंबर की देर रात किसान नेता राजीव यादव ने ‘न्यूजक्लिक’ को अपना एक वीडियो भेजा। साथ ही अपने साथ हुई पुलिस की बर्बर जुल्म-ज्यादती की कहानी भी सुनाई।
गुंडों की तरह पेश आई पुलिस
किसान नेता राजीव यादव कहते हैं, "सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडेय सहित आधा दर्जन किसान नेताओं को वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस लेकर लखनऊ रवाना हुई तो मैं और मेरे भाई विनोद यादव आजमगढ़ के लिए निकले। पुलिस लाइन में ही मुझे संदेह होने लगा कि मेरा पीछा किया जा रहा है। फिर भी हम आजमगढ़ के लिए रवाना हो गए। चोलापुर के समीप तरांव बाईपास के पास पानी पीने के लिए हमने गाड़ी यूपी 50 एबी 8001 रोकी। यह स्थान बनारस से करीब 29 किमी दूर है। हम अपनी गाड़ी पर बैठने ही जा रहे थे तभी ओवरटेक करते हुए बिना नंबर की एक मार्शल हमारी गाड़ी के सामने खड़ी हो गई। एक आदमी ने हमारी गाड़ी का दरवाजा खुलवाया। बातचीत में उसने अपना नाम विनय दुबे बताया। वो सादी वर्दी में था। राजीव भाई, बोलकर हमसे बातचीत करने लगा। शुरू में हम यह नहीं समझ पाए कि माजरा क्या है? हमारा माथा तब ठनका जब बातचीत के दौरान उसने आजमगढ़ में खिरिया की बाग में चल रहे किसान आंदोलन को खत्म करने के लिए दबाव बनाना शुरू किया। हमने विरोध किया तो उसने मेरे साथ पहले हाथापाई की और मारपीट शुरू कर दी। उसने और उसके साथ आए लोगों ने हमें कई घूसे मारे और फिर हमें जबरिया अपनी गाड़ी में बैठा लिया।"
राजीव यादव कहते हैं, "जब हमें गाड़ी में ठूसकर ले जाया जाने लगा तो घटना की तस्वीरें उतार रहे भाई विनोद यादव को भी पकड़कर उनका मोबाइल छीन लिया गया। उनके साथ भी जमकर मारपीट की गई। काफी देर तक गाड़ी के अंदर हम दोनों को मारा-पीटा गया। काफी देर तक हमें टार्चर किया गया और हमें किसी पिस्टल के बारे में पूछताछ की गई। फिर हमारा अपरहण कर हमें बनारस की तरफ ले जाया गया। इस बीच कई जगह रोक-रोककर हमें पीटा गया और उल्टे-सीधे सवाल पूछे गए। वो हमें घंटों बनारस-आजमगढ़ के बीच रास्ते लेकर आते-जाते, टार्चर और पूछताछ करते रहे।"
उन्होंने आगे बताया, "आखिर में शाम करीब सात बजे वो हमें देवगांव (आजमगढ़) थाने में लेकर पहुंचे। वहां भी हमारे साथ मारपीट और बदसलूकी की गई। हमने पीने के लिए पानी मांगा तो पुलिस ने हमें गालियां दी। इसी बीच किसी अफसर का फोन आया। मारपीट करने वाले पुलिसकर्मी इसके बाद थोड़ा नार्मल हुए। देवगांव थाना प्रभारी दिलीप सिंह यादव से हमने बातचीत करनी चाही, लेकिन उन्होंने हमें कोई साफ जवाब नहीं दिया। सिर्फ इतना कहा कि हमें कुछ भी नहीं मालूम। सब कुछ ऊपर से चल रहा है। थोड़ी देर रुकिए हम आपको घर छोड़ देते हैं। बाद में वो हमें अपनी गाड़ी से आजमगढ़ स्थित उप जिलाधिकारी (सदर) के दफ्तर में लेकर पहुंचे। वहां हमसे जबरिया मुचलका भरवाया गया। रात करीब आठ बजे हमें रिहा किया गया।"
किसान नेता राजीव कहते हैं, "बनारस और आजमगढ़ रोड पर हमें चकरघिन्नी की तरह दौड़ाया गया। इस बीच हमसे खिरिया की बाग आंदोलन में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत, अंबेडकर वाहिनी के डॉ. आरपी गौतम, किसान नेत्री पूनम पंडित, अज़रा मोबिन और डॉ संदीप पांडेय की भूमिकाओं के बारे में ढेरों सवाल किए गए। कई घंटे बाद हमें पता चला कि हमारा अपहरण पुलिस के क्राइम ब्रांच ने किया था। पुलिस हमें आतंकवादियों की तरह ट्रीट कर रही थी। हमारे ऊपर न जाने कितने लात-घूसे बरसाए गए। अपराह्न करीब तीन बजे हमारे साथी प्रवेश निषाद से हमारी बात हो पाई। तब हमने उन्हें अपने अपहरण की सूचना दी। इसी के बाद हमारे अपहरण की सूचना देश भर के किसान नेताओं तक पहुंची। हमारे साथ हुई जुल्म-ज्यादती से एहसास हुआ कि मोदी-योगी सरकार आजमगढ़ के किसानों के आंदोलन को बातचीत से नहीं, बल्कि अपहरण, मारपीट और आतंक फैलाकर खत्म करना चाहती है।"
नजरबंद किए गए डॉ. संदीप
किसान नेता राजीव यादव पर कहर बरपाने से पहले मैग्सेसे एवार्डी और सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडेय सहित आधा दर्जन किसान नेताओं को बनारस की कमिश्नरेट पुलिस ने 24 दिसंबर 2022 की सुबह कैंट रेलवे स्टेशन से हिरासत में ले लिया। वह आजमगढ़ में किसानों की जमीन अधिग्रहित कर हवाई अड्डा का विस्तार करने के विरोध में वाराणसी के अंबेडकर चौराहे से निकाली जाने वाली किसान यात्रा में शामिल होने वाले थे। गिरफ्तार किए गए लोगों को पुलिस लाइन स्थित गेस्ट हाउस में नजरबंद किया गया। इनकी नजरबंदी के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ताओं और किसानों ने पुलिस लाइन में सांकेतिक रूप से प्रदर्शन कर कड़ा विरोध जताया।
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडेय किसान महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल मिश्रा, किसान नेता अमित मौर्य, आदिल, गौरव सिंह आदि के साथ 23 दिसंबर 2022 को लखनऊ-छपरा एक्सप्रेस से बनारस के लिए रवाना हुए। ट्रेन में बैठते समय ही पुलिस इनकी बोगी में सवार हो गई। 24 दिसंबर की सुबह 6.30 बजे जैसे ही ट्रेन बनारस के कैंट रेलवे स्टेशन पर पहुंची, तभी उन्हें हिरासत में ले लिया गया। संदीप और अन्य किसानों को पहले सिगरा थाने में ले जाया गया और बाद में सभी को पुलिस लाइन स्थित गेस्ट हाउस में ले जाकर नजरबंद कर दिया गया। इसी बीच आजमगढ़ स्थित मंदुरी हवाई अड्डे के लिए भूमि अधिग्रहण के विरोध में आंदोलन चला रहे किसानों का नेतृत्व करने वाले राजीव यादव और उनके कुछ अन्य साथी पुलिस लाइन पहुंचे। संदीप पांडेय से मुलाकात कराने के बहाने उन्हें भी गेस्ट हाउस में नजरबंद कर दिया गया। इनके मोबाइल फोन भी छीन लिए गए। गेस्ट हाउस के बाहर कड़ा पहरा बैठा दिया गया और मीडिया से मिलने पर पाबंदी लगा दी गई। वह जब तक बनारस में रहे, पुलिस के कई वरिष्ठ अधिकारी गेस्ट हाउस पर डटे रहे।
काशी से शुरू होनी थी पदयात्रा
आजमगढ़ में प्रस्तावित हवाई अड्डे के विरोध में 24 दिसंबर 2022 से वाराणसी के कचहरी स्थित अंबेडकर पार्क से तीन दिवसीय पदयात्रा शुरू होने वाली थी। पदयात्रा का पहला पड़ाव चंदवक, दूसरा निजामाबाद और तीसरा मंदुरी (आजमगढ़) था। 27 दिसंबर को यह पदयात्रा आजमगढ़ के खिरिया की बाग में पहुंचकर सभा में तब्दील होने वाली थी। डॉ. संदीप और उनके साथियों का कहना था, "शुरू में पुलिस ने यह नहीं बताया कि हमें कब और कहां ले जाकर छोड़ा जाएगा? पुलिस ने गलत तरीके से हमें जबरन रोका और नजरबंद किया।"
एडीसीपी वरुणा जोन मनीष शांडिल्य ने "न्यूजक्लिक" से कहा, "किसान यात्रा की इजाजत नहीं थी। सभी को रोककर समझाया जा रहा है। पदयात्रा की अनुमति न होने, निषेधाज्ञा और कोविड प्रोटोकॉल का अनुपालन न करने की वजह से इन्हें सिर्फ डिटेन किया गया है। गिरफ्तारी किसी की नहीं की गई है। वो जहां कहेंगे, हम अपनी जिम्मेदारी के साथ उन्हें वहां पहुंचा देंगे।"
सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. संदीप पांडेय और उनके साथियों को बनारस के पुलिस लाइन गेस्ट हाउस में जब तक नजरबंद रखा गया, तब तक उसके बाहर तमाम किसान नेता और एक्टिविस्टों का जमावड़ा लगा रहा। लोक समिति के नंदलाल मास्टर, महिला चेतना की रंजू सिंह, साझा संस्कृति मंच के फादर आनंद, वल्लभाचार्य, दखल संस्था की इंदू पांडेय, कम्युनिस्ट फ्रंट के मनीष शर्मा, खदान मजदूर यूनियन की उर्मिला विश्वकर्मा के अलावा जागृति राही समेत तमाम सामाजिक कार्यकर्ता और किसान नेता वहां घंटों मौजूद रहे। किसानों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की भीड़ ने गेस्ट हाउस के सामने सांकेतिक रूप से प्रदर्शन करना शुरू किया तो पुलिस अफसरों के हाथ-पांव फूलने लगे। बाद में वो अपने साथ कुछ लोगों को लेकर अंदर गए और नजरबंद किए गए संदीप पांडेय और दूसरे किसान नेताओं से उनकी मुलाकात कराई।
एक्टिविस्ट संदीप पांडेय कहते हैं, "पुलिस लाइन गेस्ट हाउस में हमें किसी से मोबाइल पर बात नहीं करने का फरमान सुना दिया गया। हमें किसी से मिलने की मनाही थी। पुलिस ने जब जोर-जबरिया शुरू किया तो हम गेस्ट हाउस में सोफे से उतरकर नीचे जमीन पर बैठ गए और धरना शुरू कर दिया। मुझसे मिलने के लिए जो लोग पहुंच रहे थे उन्हें बताया जा रहा था कि यहां कोई संदीप पांडेय नहीं हैं। बाद में बनारस कमिश्नरेट पुलिस के एसीपी अतुल अंजान त्रिपाठी और एडिशनल सीपी राजेश कुमार पांडेय पहुंचे। उन्होंने हमें पूछा कि क्या आपको आजमगढ़ छोड़ दें? तब हमने कहा कि कि आजमगढ़ से आए किसान नेता राजीव यादव और दूसरे किसान नेताओं से बात करने के बाद हम कोई फैसला लेंगे। बाद में तय हुआ कि 26 दिसंबर को खिरिया की बाग में बड़ा आंदोलन होगा। इस दिन किसान आंदोलन के 75 दिन पूरे हो रहे हैं।"
"हमें और हमारे साथियों को अपराह्न करीब एक बजे गेस्ट हाउस से बाहर निकाला गया। फिर कड़ी सुरक्षा के बीच हमें लखनऊ के लिए रवाना कर दिया गया। हमारे साथ किसान नेता राजीव यादव, वीरेंद्र यादव, रामजनम आदि नेताओं को भी रिहा कर दिया गया, जिन्हें पुलिस ने संदेह के आधार पर हिरासत में लिया था। मीडिया के जिन लोगों ने हमसे बात करने की कोशिश की, उनके साथ भी बुरा बर्ताव किया गया।"
रिहाई के बाद मैक्सेसे अवार्डी संदीप पांडेय ने किसानों के नाम एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने 26 दिसंबर 2022 को आजमगढ़ में बड़ा आंदोलन करने की बात कही है। मीडिया से बातचीत में एक्टिविस्ट डॉ. संदीप पांडेय कहते हैं, "लखनऊ में एयरपोर्ट सिर्फ 80 एकड़ में है, जबकि आजमगढ़ में सरकार 670 एकड़ जमीन अधिग्रहित करना चाह रही है। यह बात वहां के किसानों के समझ में नहीं आ रही है। सभी के दिमाग में यही बात है कि किसानों की जमीन लेकर सरकार अडानी को देने की तैयारी है। हमें कांग्रेस नेता राहुल गांधी की यह बात सच लगती है कि भारत में मोदी की नहीं, अडानी-अंबानी की सरकार चल रही है। पूंजीपतियों के इशारे पर आजमगढ़ के हजारों किसानों को विस्थापित किया गया तो वो तबाह हो जाएंगे।"
"भारत में उद्योग धंधे नहीं, सिर्फ खेती ही चलती है। कोरोना के संकटकाल में यह बात प्रमाणित हो चुकी है। कृषि की भूमि का कोई विकल्प नहीं हो सकता और न हीं अपनी आजीविका का साधन आसानी से बदला जा सकता है। भू-अधिग्रहण अधिनियम के तहत भी किसानों से उनकी मर्जी के बगैर जमीन नहीं ली जा सकती। हवाई अड्डा हो अथवा कोई और विकास का काम, वह लोगों को उजाड़ कर नहीं किया जा सकता। जितने लोग अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा बनने से उजड़ेंगे, उतने लोगों को हवाई अड्डा या उससे जुड़े हुए उपक्रम रोजगार नहीं दे सकते। खेती के लिए ऊपजाऊ जमीन पर एयरपोर्ट बनाने की योजना लोगों की समझ से परे है। किसानों की ये लड़ाई मुआवजे के लिए नहीं बल्कि अपनी जमीन बचाने के लिए है। आजमगढ़ में भूमि अधिग्रहण से करीब 25 हजार लोग प्रभावित होंगे।"
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किसानों से छीनी जा रही ज़मीन
आजमगढ़ के किसानों के विस्थापन के मुद्दे को लेकर बवाल बढ़ता जा रहा है। पीड़ित किसानों का कहना है कि उन्हें हवाई अड्डे की जरूरत नहीं है। सरकार उसे कहीं और शिफ्ट करे। वैसे भी आजमगढ़ जिला मुख्यालय से करीब 12 किलोमीटर दूर मंदुरी में 104 एकड़ जमीन पर एयरपोर्ट का निर्माण हो चुका है। सरकार इसे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने की तैयारी में है। यह सूबे का पांचवां अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा होगा। साल 2005 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यहां हवाई पट्टी का निर्माण कराया था। पहले वहां छोटे विमानों की लैंडिंग होती थी। नवंबर 2018 में सीएम योगी आदित्यवनाथ ने हवाई पट्टी का विस्तानर करते हुए उसे हवाई अड्डा बनाने की घोषणा की। अप्रैल 2019 में बजट जारी होने के बाद जल्दो ही यहां हवाई अड्डा बन गया। अब इसे अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा बनाने के लिए जमीन के सर्वे का चल रहा है।
उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के मंदुरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण के लिए पहले फेज का सर्वे पूरा हो चुका है। दूसरे फेज में 310 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया जाना जाना है। शासन की ओर से उपलब्ध कराई गई सूची में सौरा, साती, कंधरापुर, मधुबन और कुआ देवपट्टटी बाहर हो गए हैं। इनके स्थान पर मंदुरी, जमुआ हरिराम, गदनपुर हिच्छन पट्टी, कादीपुर, हसनपुर, जोलहा जमुआ और जिगिना कर्मनपुर गांव विस्तारीकरण के दायरे में आ गए हैं। योगी सरकार ने जिन गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित करने की योजना बनाई है, उसमें गदनपुर हिच्छनपट्टी, कुंवा देवचंद पट्टी, कंधरापुर, मधुबन, बलदेव मंदुरी, सांती, सऊरा गांव शामिल हैं। किसानों का आरोप है कि प्रशासन बिना की पैमाइश किए ही जमीनों की नाप-जोख करा रहा है।
आजमगढ़ के अपर जिलाधिकारी प्रशासन अनिल कुमार मिश्र के मुताबिक, "हवाई अड्डे के विस्तारीकरण के पहले चरण में 360 एकड़ जमीन और दूसरे चरण में 310 एकड़ भूमि प्रस्तावित है जिसका प्रस्ताव शासन को भेजा जा चुका है। जब बजट आवंटन होगा तब काश्तकारों से मुआवजे पर बात की जाएगी। यह सरकार का ड्रीम प्रोजेक्ट है। इसे इंटरनेशनल एयरपोर्ट बनाने की तैयारी की जा रही है।"
मंदुरी एयरपोर्ट परियोजना के कारण अपनी भूमि से बेदखली का सामना कर रहे किसान इसलिए सरकार से लड़ रहे हैं क्योंकि वो मुआवजे से संतुष्ट नहीं है। वह पुनर्वास पैकेज चाहते हैं। एयरपोर्ट के विस्तारीकरण परियोजना का विरोध करने वाले ग्रामीणों का डर यह है कि उनके हाथ से जमीनें चली गई तो नए सिरे से बसने में कई पीढ़ियों को मरना-खपना पड़ेगा। जमुआ हरिरामपुर गांव के आशोक राम, शंभू पासवान, आशीष उपाध्याय, सुधीर उपाध्याय, रामअवतार शुक्ला, निर्मल राम आदि किसानों का आरोप है कि भूमि अधिग्रहण के बाद आठ ग्राम सभाएं पूरी तरह उजाड़ दी जाएंगी।
वह कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार ने किसानों की जिंदगी पर हमला किया है। हमने अपने आंदोलन से यह साबित कर दिया है कि हम बिकाऊ नहीं हैं। जमीन सिर्फ पेट नहीं भरती। इससे हमारा मान-सम्मान, इज्जत, और भावनाएं जुड़ी हैं। सरकार कह रही है कि वो हमसे हमारी जमीनें छीन लेगी। हमारी पुश्तैनी जमीनें एक दिन की नहीं, बल्कि दादा-परदादाओं ने बहुत मेहनत से कमाई करके खरीदी है। सरकार जब तक मंदुरी हवाई अड्डा का मास्टर प्लान वापस नहीं लेती तब तक खिरिया की बाग में किसानों का धरना-प्रदर्शन जारी रहेगा।"
एसकेएम भी दे रहा समर्थन
आजमगढ़ के किसानों के आंदोलन को संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) भी समर्थन दे रहा है। मोर्चा के एक जांच दल ने समूचे मामले की पड़ताल कर एक विस्तृत रिपोर्ट तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 12-13 अक्टूबर 2022 को बिना नोटिस दिए एसडीएम तहसीलदार, थाना प्रभारी अपने साथ बड़ी संख्या में लोगों को लेकर आधी रात में जमुआ हरिराम गांव में सर्वे करने पहुंचे। ग्रामीणों ने जब इसका विरोध किया तो उनको रासुका की धमकी देते हुए, मारपीट शुरू कर दी। इस घटना में सावित्री व सुनीता के अलावा कपिल और संजीव यादव को गंभीर चोटें आईं। अकारण चार लोगों को थाने में ले जाकर पुलिस ने हवालात में ठूंस दिया।
खिरिया की बाग में किसानों के आंदोलन को धार देने पहुंची गांव की लोग की कार्यकारी संपादक एक्टिविस्ट अपर्णा कहती हैं, "इस आंदोलन ने किसानों को अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सिखा दिया है। महिलाओं ने अपनी बात रखना सीख लिया है और धीरे-धीरे सभी प्रभावित गांवों के लोग भू-अधिग्रहण अधिनियम 2013 के बारे में जान गए हैं। वे विस्थापन से पहले ग्राम पंचायत और मुआवजा नीति की स्पष्ट अधिसूचना की अनिवार्यता के बारे में बात कर रहे हैं। सरकार की कोई स्पष्ट नीति नहीं है। ज़मीन के दलाल और व्यापारी गांवों में चक्कर लगाने लगे हैं। वे चाहते हैं कि सस्ते दाम पर अधिक से अधिक ज़मीनें खरीद लें ताकि जब भी यहां कुछ हो तब वे तगड़ा मुनाफा कूट सकें। सांसद दिनेश लाल निरहुआ समेत सत्तापक्ष से जुड़े तमाम लोग अनाप-शनाप बयान दे रहे हैं और जनता का मनोबल तोड़ने में लगे हैं। सरकार की ओर से एक चुप्पी है। न कोई अधिकारी आता है न कोई नाप-जोख होती है। बस धरनास्थल पर एक पुलिस बल मौजूद रहता है।"
अपर्णा यह भी कहती हैं, "स्वत: स्फूर्त ढंग से खड़ा इस आंदोलन में मकान ज़मीन बचाओ संघर्ष समिति के बैनरतले हर रोज बड़ी तादाद में लोग शिरकत कर रहे हैं। आंदोलन को किसान संग्राम समिति, रिहाई मंच, अखिल भारतीय किसान महासभा, जनमुक्ति मोर्चा, संयुक्त किसान मजदूर संघ और जय किसान आंदोलन, लोकविद्या आश्रम, सीजेपी, गंगा सेवा समिति, आशा ट्रस्ट, एपवा, मेहनतकश मुक्ति मोर्चा और कम्युनिस्ट फ्रंट समेत तमाम संगठन समर्थन और सहयोग सहयोग दे रहे हैं। इस तरह एक बड़ा संघर्ष परवान चढ़ रहा है।"
किसान आंदोलन को सिर्फ पूर्वांचल ही नहीं, देश भर के जाने-माने एक्टिविस्ट और किसान नेता धार दे रहे हैं। नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर, संयुक्त किसान मोर्चा के नेता राकेश टिकैत, इलाहाबाद से अंबेडकर वाहिनी के डॉ. आरपी गौतम, बुलंदशहर से किसान नेता पूनम पंडित, लखनऊ से घंटाघर आंदोलन की नेता अज़रा मोबिन, मैक्सेसे अवार्डी डॉ संदीप पांडेय, एनएपीएम की राष्ट्रीय समन्वयक अरुंधती धुरू, गोरखपुर से भीम आर्मी के रविन्द्र सिंह गौतम, हाईकोर्ट अधिवक्ता संतोष सिंह, बलिया से राघवेंद्र राम, मऊ से अरविंद मूर्ति, हरियाणा के किसान नेता गुरुनाम सिंह चढूनी, उत्तराखंड के किसान नेता जगतार सिंह बाजवा ने भी यहां आकर जो बिगुल फूंका है उससे यह लड़ाई निर्णायक बनने लगी है।
पीड़ित किसानों का कहना है कि जो जमीन पीढ़ियों से हमारे पास है वह हमें अन्न की सुरक्षा के साथ जीवन जीने का अधिकार देती है। सरकार विकास की बात करती है, लेकिन उसका चरित्र क्या होगा इस पर वह बहस नहीं करती। मोदी-योगी सरकार किसानों और मजदूरों की जमीन छीनकर पूंजीपतियों के लिए एयरपोर्ट बना रही है, जिसकी आम जनता को कोई जरुरत नहीं है। सरकार सचमुच किसानों की हितैषी है तो वह हर पांच किलोमीटर पर मंडी का निर्माण कराए। हम न अपनी जान देंगे, लेकिन जमीन नहीं देंगे। सरकार को विकास करना है तो अस्पताल और स्कूल बनवाए। एयरपोर्ट ऐसा फर्जी विकास है, जिसमें जनता का हित निहित नहीं है।
किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे रिहाई मंच के मुखिया राजीव यादव कहते हैं, " डबल इंजन की सरकार अडानी के लिए किसानों की जमीनें लूटना चाहती है। इंडियन एयरलाइंस, कोयला, खनन, रेलवे, बीमा आदि सार्वजनिक संस्थानों को बेचने के बाद भाजपा सरकार जनता का भरोसा खो चुकी है। जमीन छीनने के सरकार के हर कदम में पूंजीपतियों की दलाली छिपी नजर आती है। एक तरफ आवारा पशु खेती बर्बाद कर रहे और दूसरी ओर सरकार गरीबों को उजाड़ रही। आजमगढ़ में ही बंजर, परती, जीएस जमीनों पर बसे गरीबों को बेदखल की साजिशें रची जा रही हैं। पूर्वांचल में किसानों व मजदूरों को सबसे सस्ता और लाचार मजदूर बनाया जा रहा है।"
सदमे से मर रहे किसान
"अचानक सर्वे शुरू होने से लोग घबरा गए हैं। अपनी पुश्तैनी जमीन चली जाने के सदमें से गदनपुर गांव के लल्लन राम व जिगिना गांव के जवाहिर यादव समेत की किसानों की मौत हो चुकी है। अगर योगी आदित्यनाथ ने आज़मगढ़ हवाई अड्डे के शिलान्यास करने की कोशिश की तो उनका काले झंडों से स्वागत किया जाएगा। जिन गांवों की जमीनों का अधिग्रहण किया जाना है उनमें ज्यादातर सीमांत किसान हैं। ज़मीन ही आजीविका का आधार है। जमुआ हरिराम गांव के प्राथमिक स्कूल के पास हर रोज अपराह्न तीन बजे से शाम पांच बजे तक धरना और जनसभा का आयोजन किया जा रहा है।"
किसान नेता वीरेंद्र यादव न्यूजक्लिक से कहते हैं, "पूर्वी उत्तर प्रदेश में खड़ा हुआ जमीन-मकान बचाने का यह आंदोलन ऐतिहासिक है। सवा दो महीने तक आंदोलन कर किसानों ने सरकार को चेता दिया है कि हम झुकने वाले नहीं हैं। सरकार यही सोचती थी कि गरीब किसान-मजदूर थक जाएगा और हार जाएगा। जीतने के दृढ़ संकल्प के साथ हमारे साथ देश भर के किसान-मजदूर खड़े हैं। हवाई अड्डे के विस्तार के लिए जिन आठ गांवों की हजारों बीघा जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है उसे लेकर हजारों किसानों को विस्थापन और आजीविका खोने का डर सता रहा है। अधिग्रहण के लिए 80 प्रतिशत किसानों की सहमति कानून का सरकार पालन नहीं कर रही है और जबरिया जमीन हथियाना चाह रही है।"
(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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