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हरियाणा: नफ़रत और हिंसा के बीच अमन की तस्वीरें...

जहां एक ओर सरपंच शौकत ने गांव के गुरुकल की सुरक्षा के लिए मोर्चा संभाला तो वहीं तालीम हुसैन ने ब्रज परिक्रमा यात्रियों के लिए दरवाज़े खोले। पढ़ें पूरी ख़बर:
Peace and Brotherhood

"दहशत बनी हुई है, घरों में खाने-पीने का इतज़ाम नहीं हो पा रहा है, पीने के पानी के लिए दिक्कत हो रही है। जो शरारती तत्व थे उन्होंने जो करना था करके भाग गए, अब जो लोग बचे हैं उन्हें परेशानी हो रही है। हालात तो कंट्रोल में हैं लेकिन सन्नाटा है, पुलिस की धरपकड़ जारी है, सही-ग़लत लोगों को पकड़ा जा रहा है, इसके लिए हमने पुलिस-प्रशासन से बात की लेकिन अभी तक कोई रास्ता नहीं निकल रहा है। लोग पलायन कर रहे हैं, पहाड़ों (अरावली) में चले गए हैं, बहुत से लोग राजस्थान चले गए, ये समझ लीजिए पूरी कॉलोनी में बस कुछ लोग बचे हैं।"

ये कहना है नूंह के एक स्थानीय का, पीस कमेटी के ये सदस्य, नूंह के हालात को बयां करते हुए एक गहरी सांस लेते हैं और फिर ऊपर वाले को याद करते हुए कहते हैं "यहां ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, ऐसा नहीं होना चाहिए था।"

हमने यहां लोगों से बात की और हालात समझने की कोशिश की, हालांकि डर का हवाला देते हुए लोगों ने अपना नाम नहीं बताया।

31 जुलाई को नूंह में दो गुटों के बीच हुए पथराव के बाद आज भी नूंह में कर्फ्यू लगा हुआ है। द टाइम्स ऑफ इंडिया पर छपी ख़बर के मुताबिक:

* हरियाणा हिंसा में अब तक 93 FIR दर्ज की गई है 

* 176 लोगों को गिरफ्तार किया गया है ।

* हरियाणा सरकार के मुताबिक हिंसा में अब तक 6 की मौत हो चुकी है। 

* नूंह में आज तीन घंटे के लिए इंटरनेट सेवा भी बहाल की गई। 

* PTI के मुताबिक बीती रात नूंह के तावडू में दो मस्जिदों पर पेट्रोल बम फेंके गए। 

हमने पीस कमेटी के इन सदस्य से जानने की कोशिश की कि लोग पलायन क्यों कर रहे हैं, और क्या प्रशासन को इसकी जानकारी है? उन्होंने कहा कि "हमने प्रशासन से बात की लेकिन पुलिस प्रशासन को हर चीज़ का पता है, यहां के सारे इनपुट हैं उनके पास। जिस तरह से टारगेट करके परेशान किया जा रहा है ऐसा लग रहा है कि लोगों की पहचान कर उन्हें पीटा जा रहा है, ये बहुत ग़लत हो रहा है।  ये सब चीज़ें नहीं होनी चाहिए थी। दोषी तो दोषी है बेशक उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए लेकिन दूसरे लोगों को इस तरह से प्रताड़ित करना बहुत ग़लत है।" 

हमने उनसे पूछा कि क्या प्रशासन उनकी बात नहीं सुन रहा है? तो उनका जवाब था "हम लगातार प्रशासन से मिल रहे हैं ऐसा नहीं है कि हमारी बातों पर गौर नहीं किया जा रहा है, हमारी बात सुनी जा रही है, कुछ लड़कों को छोड़ा गया है लेकिन हां, हमारी मेजर बातों को नहीं सुना जा रहा है।"

इसे भी पढ़ें : नूंह हिंसा: शांत माहौल में आख़िर किसने घोला ज़हर?

मेवात विकास सभा के पूर्व प्रधान ने बातचीत में दावा किया कि "प्रशासन ज़ुल्म कर रहा है, गांव में रात को डर का माहौल है, इलाके में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ है, गांव में लड़कियों, औरतों के अलावा कोई और नहीं हैं क्योंकि जो मिल रहा है उसे ही उठा कर गाड़ी में पटक कर ले जा रहे हैं।"

इन स्थानीय लोगों के मुताबिक "नूंह में हिंदू-मुस्लिम का कोई झगड़ा नहीं है, ये झगड़ा गुंडों का है।" साथ ही इन लोगों का ये भी मानना है कि जो भी हिंसा में शामिल थे उन पर कार्रवाई होनी चाहिए लेकिन हिंसा में कौन शामिल थे ये जांच का विषय है, जिसमें पुलिस प्रशासन लगा हुआ है। 

जहां एक तरफ मेवात में हुई हिंसा को धार्मिक रंग देने की कोशिश की जा रही है, वहीं उसका एक दूसरा रुख़ भी है। घटना में कई एंगल तलाश किए जा रहे हैं। लेकिन मेवात की एक तस्वीर ये भी है।

सरपंच शौकत ने निभाया अपना फ़र्ज़

31 जुलाई को जिस दिन हिंसा हुई उसी दिन नूंह से क़रीब 18-19 किलोमीटर दूर एक गांव है भादस जहां एक गुरुकुल है, इस गुरुकुल में एक आचार्य और 30 बच्चे हैं। लेकिन उस दिन यात्रा के स्वागत के लिए आस-पास से लोग भी यहां पहुंचे हुए थे। क़रीब डेढ़ सौ लोग गुरुकुल में मौजूद थे। बताया गया कि जब नूंह में हालात बिगड़े तो भादस के गुरुकुल में लोग घबरा गए। एक भीड़ भादस गांव की तरफ भी बढ़ी लेकिन गांव के सरपंच शौकत ने मोर्चा संभाला और गांव के साथ मिलकर किसी को भी आगे नहीं बढ़ने दिया।

हमने सरपंच शौकत से फोन पर बात की और उस दिन के बारे में पूछा, उन्होंने बताया कि "जब भीड़ यहां पहुंची तो सब घबरा गए लेकिन हमने आर्चाय जी से कहा कि आप तक कोई हमें मारने के बाद ही पहुंचेगा, आप घबराए नहीं।"

शौकत आगे बताते हैं कि "उस वक़्त मेरे ज़ेहन में चल रहा था कि भाईचारा बना रहना चाहिए यहां हिंदू कम हैं और मुसलमान ज़्यादा लेकिन मैं गांव का सरपंच हूं और मैं ये कलंक नहीं लगने दूंगा, मैंने अपना धर्म और भाईचारा समझ कर ये फ़र्ज़ निभाया।"

क़रीब पांच हज़ार की आबादी वाले इस गांव में सरपंच शौकत ने रात 12 बजे तक मोर्चा संभाला और पुलिस-प्रशासन के आने तक गांव में किसी को घुसने नहीं दिया। फिलहाल यहां भी हालात कंट्रोल में हैं लेकिन धारा 144 लागू है।

तालीम हुसैन ने खोले ब्रज परिक्रमा यात्रियों के लिए दरवाज़े

जिस तरह सरपंच शौकत ने अपने फ़र्ज़ को धर्म समझ कर निभाया उसी तरह मेवात के ही एक और गांव नीमका की भी एक तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। ये तस्वीर है तालीम हुसैन के घर की है। तालीम हुसैन ने ब्रज चौरासी कोस यात्रा के यात्रियों के लिए अपने घर के दरवाज़े खोल दिए। हमने तालीम हुसैन से फोन पर वायरल तस्वीरों के बारे में जानना चाहा। उन्होंने बताया कि "जिन तस्वीरों को आप देख रहे हैं इसमें ये परिक्रमा यात्री हैं, हिंदू भाइयों का यकीन है कि ये इलाका कृष्ण जी से जुड़ा है, ये 84 कोस के इलाके में आता है जिसे ब्रज परिक्रमा कहते हैं, जैसे ही ये यात्रा हरियाणा में प्रवेश करती है एक गांव आता है बीछोर (जिसकी संधि करें तो 'ब्रज का छोर' होता है) और उसके बाद मेरा गांव आता है नीमका जहां से यात्रा गुज़रती है, और हर साल की तरह इस साल भी हमने यात्रियों के क़याम (ठहरने)  के लिए इतज़ाम किए, ये यात्रा क़रीब 15 दिन से चल रही है और इस महीने की 16 तारीख़ तक चलेगी।"

"मेव बाबर से लेकर अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़े"

तालीम हुसैन का कहना है कि "यहां लोकल हिंदू-मुसलमान का कोई झगड़ा नहीं है, मेवात की ज़मीन ऐसी है कि जहां का इतिहास उठा कर देख लीजिए यहां कभी हिंदू-मुसलमान का झगड़ा नहीं रहा है, ये मेव कौम ऐसी रही है जो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ भी लड़ी है और मुगलों के ख़िलाफ़ भी। खानवा की लड़ाई में उतरी है, हसन ख़ान मेवाती, बाबर के ख़िलाफ़ लड़े, ये ख़ित्ता कभी भी कम्युनल नहीं हुआ है यहां हमेशा ही शांति रही है, मेवात में ऐसी स्थिति न तो पहले कभी थी और न ही कभी होगी।"

एक सेक्शन के द्वारा लगातार ये कहा जा रहा है कि 31 जुलाई की धार्मिक यात्रा को निशाना बनाया गया, हालांकि ये जांच का विषय है लेकिन एक तस्वीर यह भी है कि पिछले 15 दिन से इसी इलाके में ब्रज 84 कोस परिक्रमा यात्रा शांतिपूर्वक चली और अब भी चल रही है, जिसमें तालीम हुसैन जैसे मेव मुसलमान भी सहयोग कर रहे हैं।

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